शिक्षक की मौत के बाद जागा विभाग, नाव के निबंधन का दिया आदेश

उनकी मौत का जिम्मेदार ये सिस्टम है जो विपरीत परिस्थितियों में भी शिक्षक से सेवा तो मांगता है लेकिन उसके जीवन की सुरक्षा से उसका कोई लेना देना नहीं है.

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पल्लवी कुमारी
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बिहार में मानसून ने कई पुलों को अपने तेज बहाव में बहा लिया है. सरकार तो यह कभी नहीं मानेगी कि पुल निर्माण में कहीं मिलावट हुई है. इसलिए हमें यह मानना होगा कि मानसून और ज्यादा बारिश ने ही गड़बड़ किया है.

अब एक बार फिर मानसून की गड़बड़ी के कारण ही एक होनहार युवा शिक्षक की मौत नाव से गिरकर गंगा नदी में डूबने से हो गयी. अब इसमें भी दोष गंगा नदी या फिर उस शिक्षक का ही है. जिसने नदी पार करने से पहले तैरना नहीं सीखा. क्योंकि सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा की व्यवस्था करना प्रशासन की नहीं बल्कि हमारे स्वयं की जिम्मेदारी है. जनता द्वारा दिया गया टैक्स, केवल सरकार के खजाने भरने के लिए है. उसका आमजनों की सुरक्षा, सुविधा और विकास के कार्यों से कोई सरोकार नहीं है. 

क्या है घटना?

शुक्रवार 23 अगस्त को दानापुर के नासरीगंज के फक्कड़ महतो घाट पर एक स्कूल शिक्षक की मौत नदी में डूबने से हो गई. बताया जा रहा है दियारा के छोटा कासिमचक स्थित उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय के गणित शिक्षक अविनाश कुमार रोजना की तरह नदी पार करने के लिए नाव पर चढ़े थे. तभी सामने से आ रही दूसरी नाव ने किनारे खड़ी नाव में टक्कर मार दी.

अचानक हुई तेज टक्कर के कारण नाव असंतुलित होकर आगे बढ़ गयी और शिक्षक अविनाश कुमार संतुलन खोकर गंगा नदी में गिर गये. नाव पर सवार अन्य साथी शिक्षकों ने नाविकों से मदद के लिए आवाज लगाई लेकिन अमानवीयता की हद तब हो गयी जब घाट पर मौजूद करीब 10 नाविक अपनी अपनी नाव लेकर मौके से फरार हो गये. किसी ने बचाने का प्रयास नहीं किया.

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घटना के बाद नाव पर शिक्षक की बाइक

घटना की जानकारी के बाद एसडीआरएफ की टीम तलाशी अभियान में जुटी है  लेकिन शिक्षकों का आरोप है कि सूचना देने के बाद भी टीम दो घंटे बाद पहुंची. आक्रोश में शिक्षकों ने पटना-दानापुर मुख्य मार्ग को जाम कर हंगामा करना शुरू कर दिया. शिक्षक जल्द से जल्द अविनाश कुमार की तलाश करने की मांग करने के साथ ही दियारा क्षेत्र में स्थित स्कूल को बंद करने की मांग करने लगे. इसके बाद दानापुर के एसडीएम प्रदीप सिंह और एसपी दीक्षा ने शिक्षकों को समझा बूझाकर सड़क से हटाया.

शिक्षकों में आक्रोश

दियारा क्षेत्र में 45 प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च विद्यालय है. इन स्कूलों में कार्यरत सैकड़ो शिक्षक प्रत्येक दिन नाव से ही विद्यालय आते-जाते हैं. लेकिन इनके लिए घाट पर किसी तरह के सुरक्षा इंतजाम नहीं किये गये हैं. नदी की तेज धारा में शिक्षक, छात्र और दूसरे यात्री असुरक्षित नावों में बिना किसी सुरक्षा उपकरण के यात्रा करते हैं.   

शुक्रवार को हुई घटना के बाद से शिक्षकों में काफी आक्रोश है. इस घटना से पहले भी शिक्षक, विभाग पर तानाशाही रवैया अपनाने का आरोप लगाते रहे हैं. शिक्षकों का आरोप है की पहले तो विभाग द्वारा शिक्षकों की पोस्टिंग दूर दराज के क्षेत्रों में कर दी जाती है.उसके बाद समय से पांच मिनट की होने पर भी उपस्थिति काट दिया जाता है. इससे शिक्षकों के ऊपर मानसिक दबाव रहता है. इस कारण यात्रा करते समय शिक्षक हड़बड़ी में हादसे का शिकार हो जाते हैं.

किशनगंज जिले के उत्क्रमित मध्य विद्यालय भाटटोली में पदस्थापित शिक्षक राहुल कुमार झा दरभंगा जिले के रहने वाले हैं. घर से दूर हुई पोस्टिंग से राहुल झा को काफी परेशानियों का सामना करना पर रहा है. चूंकि रोजना दरभंगा से किशनगंज आना जाना संभव नहीं था इसलिए उन्होंने स्कूल से एक किलोमीटर की दूरी पर किराए पर रूम लिया हुआ है.

शिक्षक अविनाश कुमार की मौत से दुखी राहुल बताते हैं “अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि ऐसी घटना हो गयी है. कल ग्रुप में जब यह खबर आई तो हम सब शॉक हो गये. उनकी पहली पोस्टिंग मेरे साथ ही छठी से आठवी कक्षा के लिए दरभंगा में हुआ था. दूबारा उनका रिजल्ट 11वीं-12वीं में मैथ विषय के लिए हो गया. इस बार पोस्टिंग पटना जिले में हुआ. एक छात्र जो किसी तरह मेहनत कर नौकरी में आया था उसे प्रशासन से ऐसी उम्मीद नहीं थी. उनकी मौत का जिम्मेदार ये सिस्टम है जो विपरीत परिस्थितियों में भी शिक्षक से सेवा तो मांगता है लेकिन उसके जीवन की सुरक्षा से उसका कोई लेना देना नहीं है.” 

राहुल कुमार शिक्षक अविनाश की मौत का जिम्मेदार सिस्टम को ठहराते हुए दूर दराज के जिलों में हुई शिक्षकों की पोस्टिंग पर सवाल उठाते हैं. राहुल कहते हैं “दियारा क्षेत्र या बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में रहने वाले लोगों की मजबूरी उन्हें तैरना सीखा देती है. ऐसी दुर्घटना होने पर वह कुछ समय तक अपना बचाव कर सकते हैं. लेकिन बाहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग जहां ऐसी समस्या नहीं है, वे तैरना नहीं जानते हैं. अगर वैसे क्षेत्रों के व्यक्ति की पोस्टिंग किसी सरकारी संस्था में हो रही है तो यह सरकार की जिम्मेदारी है की वह उनके सुरक्षा के इंतजाम करें. नहीं तो केवल उन्हीं लोगों की पोस्टिंग वहां की जाए जो उस क्षेत्रविशेष की परिस्थितियों से अवगत हों उसके अनुकूल हों.”

बीते वर्ष केके पाठक ने शिक्षकों को विद्यालय के करीब 15 किलोमीटर के दायरे में रहने के आदेश दिए थे. ताकि स्कूल देर से पहुंचने और छुट्टी के समय पहले निकलने के चक्कर में बच्चों की पढ़ाई बाधित ना हो.लेकिन सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में बाहरी शिक्षकों को रूम मिलना काफी कठिन होता हैं. क्योंकि गांव के घर इस तरह नहीं बनाये जाते जहां बाहरी लोगों को एक कमरा किराए पर दिया जा सके.

राहुल बताते हैं कैसे उन्हें अपने लिए एक कमरा खोजने में मशक्कत करनी पड़ी थी. वे कहते हैं “लोग कहते हैं सैलरी भी लेना है और गांव में भी नहीं रहना है. लेकिन कोई यह नहीं बताता की गांव में किराए पर रूम मिलना कितना मुश्किल है. मुझे खुद काफी मुश्किल से एक रूम मिला है. बाजार के किनारे बसे कुछ गांव में तो रूम मिल भी जाता है लेकिन आज भी देहात में यह मुमकिन नहीं है.” 

शिक्षकों द्वारा घर के नजदीकी स्कूल में पोस्टिंग की मांग को समाज का एक वर्ग उचित ठहराता रहा है तो वहीँ कुछ लोग इसे ईमानदारी से काम ना करने का बहाना बताते रहे हैं. लेकिन यह प्रश्न भी वास्तविक हैं की क्या ग्रामीण क्षेत्रों में अपरीचित व्यक्ति को किराए पर रूम मिलना आसान हैं.

शिक्षा विभाग का आदेश

घटना के बाद शिक्षा विभाग ने तत्काल राहत देते हुए नदी पार कर स्कूल पहुंचने वाले शिक्षकों को उपस्थिति बनाने में एक घंटे की छूट दे दी है. क्योंकि उनके आवागमन में खतरा है. ऐसे में यदि शिक्षक एक घंटे देर से स्कूल पहुंचेंगे तो भी उन्हें अनुपस्थित नहीं माना जाएगा. नए आदेश के मुताबिक अगर किसी विशेष काम से शिक्षक या विद्यालय के कर्मी निर्धारित समय पर स्कूल नहीं पहुंचते हैं तो देरी से दर्ज उपस्थिति मान्य होगी.

साथ ही बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों के जिलाधिकारियों को यह निर्देश दिया गया है कि अगर स्कूल बंद करने की आवश्यकता है, तो किया जा सकता है. इसके संबंध में शिक्षा विभाग के सचिव ने सभी जिला पदाधिकारियों को निर्देश भेजा है. 

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शिक्षक राहुल झा कहते हैं “15 अगस्त को झंडोतोलन की ऐसी कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर सामने आई, जिसमें बच्चे घुटने से ऊपर पानी में खड़े है. बच्चे और शिक्षक मज़बूरी में उस स्कूल में आ रहे हैं जहां सांप बिच्छू का डर है. पहले जिलाधिकारी बाढ़ की समीक्षा कर स्कूल बंद करने का आदेश दे देते थे. लेकिन पिछले एक- डेढ़ साल में ऐसा तनातनी का माहौल बना की डीएम अपने जिले का कोई भी निर्णय लेने से पहले हजार बार सोचते हैं.”

दरअसल, इसी वर्ष जनवरी माह में शीतलहर को देखते हुए जब पटना डीएम ने स्कूल बंद करने के आदेश दिए तो अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने इसे रद्द कर दिया. इसी कारण पटना डीएम और एसीएस के बीच लंबे समय तक विवाद चला था. 

नावों का निबंधन जरुरी 

आक्रोशित शिक्षकों ने विभाग के समक्ष मांग रखी की बाढ़ की स्थिति में दियारा पार के स्कूल बंद कर दिए जाए. हालांकि डीएम चंद्रशेखर सिंह ने इससे इंकार कर दिया. उन्होंने कहा लंबे समय तक स्कूलों को बंद करना उचित नहीं है. इसलिए तत्काल घाटों पर निबंधित नाव, लाइफ जैकेट और गोताखोरों की व्यवस्था की जाएगी.

साथ ही जलस्तर अधिक होने पर शिक्षकों के रहने की व्यवस्था भी दियारा क्षेत्र के स्कूलों के नजदीक में करने का आदेश दिया. इसके अलावा सीओ और बीईओ को बैठक कर दियारा क्षेत्र के स्कूलों में आने-जाने वाले शिक्षकों के मार्ग को चिन्हित करने का आदेश दिया है.

 

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जिन घाटों से शिक्षक, विद्यालय के कर्मी और स्कूली बच्चे नदी पार कर आते-जाते हैं, वहां सरकारी नाव की व्यवस्था करने का निर्देश दिया गया है. इन घाटों पर निबंधित नाव की संख्या, नाविक का नाम, पता और मोबाइल नंबर, नाव की क्षमता, नाव के साथ प्रतिनियुक्ति गोताखोर का नाम, पता और मोबाइल नंबर अंकित करने का भी निर्देश दिया गया है. इसकी मॉनिटरिंग हल्का कर्मचारी, अंचलाधिकारी और प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को करना है. वहीं अवैध नाव के परिचालन पर रोक लगाने के लिए सभी अनुमंडल पदाधिकारी अपने-अपने क्षेत्र में नावों के निबंधन की जांच करेंगे. आदेश का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी.

आज विभाग द्वारा सुरक्षा के जो भी उपाय किये जा रहे हैं, अगर वह समय रहते किए जाते तो, एक शिक्षक की जिंदगी बचाई जा सकती थी. लेकिन अधिकारी या जनप्रतिनिधि तबतक किसी समस्या का हल निकालने का प्रयास नहीं करते हैं, जबतक कोई बड़ी घटना ना हो जाये.

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