बिहार में शिक्षक भर्ती परीक्षा के लिए लाखों अभ्यर्थी तैयारी करते हैं. हाल में ही इसके तीसरे चरण की परीक्षा का आयोजन हुआ था. जिसके लिए साढ़े 3 लाख से ज्यादा अभ्यर्थियों ने फॉर्म भरा था. इस परीक्षा से बीपीएससी जैसे बड़े विभाग का नाम शिक्षकों के नाम के आगे जुड़ जाता है. इससे युवा शिक्षकों के अंदर एक जिम्मेदारी, आत्मविश्वास और अलग पहचान भी बनती है. मौजूदा समय में राज्य में बीपीएससी शिक्षकों का खूब बोलबाला है. इस परीक्षा के पहले चरण का नियुक्ति पत्र खुद विकास बाबू ने बांटा था. राजधानी पटना में बड़े स्तर का कार्यक्रम आयोजित कर शिक्षकों को नियुक्ति पत्र दिया गया. तत्कालीन डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने चट-पट-झट नौकरी का नारा भी इसी कार्यक्रम से दिया था. मगर सरकार के इन तमाम जुमलो पर आज की एक खबर ने आंखें खोल दी.
राजधानी पटना से रोज की तरह अपने कार्यस्थल को रवाना हो रहे बीपीएससी टीआरई-1 के शिक्षक की डूबने से मौत हो गई. पटना के गंगा नदी में नांव पर अपनी गाड़ी चढ़ाकर वह भी खुद शिक्षा के मंदिर में अलख जलाने जा रहे थे. मगर उसके पहले ही सरकार की को व्यवस्था के कारण वह डूब गए.
जब से बीपीएससी शिक्षक की नौकरी चर्चा में आई है, तब से शिक्षकों के दूरदराज पोस्टिंग, पानी में नाव के सहारे स्कूलों तक आना-जाना, कीचड़ भरे रास्तों में गाड़ी चला कर स्कूल पहुंचना, बिना नेटवर्क वाले इलाके में अटेंडेंस के लिए पेड़ों और घरों के छतों पर मंडराते रहना इत्यादि खबरें सुर्खियों में आती है. शिक्षकों के लिए हर नए दिन के साथ एक नया फरमान विभाग जारी करता है. विभाग और सरकार के आदेशों का पालन न करने पर नौकरी जाने का खतरा, विरोध करने पर पुलिस की लाठी का डर भी शिक्षकों को सताता है. ऐसी हालत में समाज सुधारक कहे जाने वाले शिक्षक अपनी हालत सुधरे बिना जो प्रभु की मर्जी मानकर नौकरी कर रहे हैं.
राज्य के बाढ़ ग्रसित इलाकों में सीएम हवाई दौरे पर पहुंचते हैं और हाथ हिलाते हुए न जाने क्या निर्देश देते हैं. इन निर्देशों में शायद यह शामिल होता होगा कि शिक्षकों को कैसे इन्हीं नदियों के सहारे स्कूलों तक पढ़ाने भेजा जाए. बाढ़ में डूबे सैकड़ो गांव और वहां के लोगों के जनजीवन की असलियत हवाई दौरे से नहीं समझी जा सकती है. धरातल पर की सच्चाई वहां जाकर, उनके बीच रहकर ही महसूस की जा सकती है.
शिक्षक तो अपने नौकरी और पढ़ाने की जिम्मेदारी को सर आंखों पर रखकर जान जोखिम में डालते रहेंगे. मगर यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि जिन्हें जीवन संवारने की जिम्मेदारी दी गई है, उनके जीवन रक्षा की जिम्मेदारी किसी को लेनी होगी और यह जिम्मेदारी पूरी तरह से रोजगार का ढिंढोरा पीटने वाली सरकार के माथे होनी चाहिए.