डिलीवरी के हर ऑर्डर के पीछे संघर्ष की कहानी: गिग वर्कर्स का दर्द

28 जनवरी को पटना के बिरसा मुंडा चौक, गर्दनीबाग में अमेज़न, ज़ोमैटो, स्विगी और फ्लिपकार्ट के गिग वर्कर्स ने जीआरडी एसोसिएशन के नेतृत्व में हड़ताल की। गिग वर्कर्स का कहना है कि लेकिन उन्हें उचित वेतन और सुरक्षा नहीं मिलती।

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मधुयंका राज
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 महेंद्र एक गिग श्रमिक है जो स्विगी में काम करते है. उनकी आप बीती खुद में एक कहानी है जो सभी के दिलों को भावविभोर कर सकती है. स्विगी के डिलीवरी एजेंट महेंद्र की कहानी गिग वर्कर्स की दुर्दशा को उजागर करती है। महेंद्र 2019 से स्विगी में काम कर रहे हैं और उनकी आपबीती उन लाखों गिग वर्कर्स की हकीकत को बयान करती है, जो बिना किसी स्थायी सुरक्षा के जोखिम भरे हालात में काम कर रहे हैं।M

दुर्घटना जिसने महेंद्र की जिंदगी बदल दी

2019 की एक दोपहर, महेंद्र बोरिंग रोड स्थित वरुण विहार रेस्तरां से ऑर्डर लेकर पानी टंकी की ओर जा रहे थे। ए. एन. कॉलेज के पास महावीर कैंसर अस्पताल के एक कार ने अचानक यू-टर्न लिया और महेंद्र की बाइक से टकरा गई। इस दुर्घटना में महेंद्र गंभीर रूप से घायल हो गए। होश आने पर उन्होंने पाया कि उनकी दोनों टांगों की हड्डियां टूट चुकी थीं और उनमें रॉड डालने की जरूरत थी। इलाज का कुल खर्च 1.40 लाख रुपये आया, लेकिन स्विगी ने केवल 1 लाख रुपये की सहायता राशि दी, शेष 40,000 रुपये महेंद्र को खुद भरने पड़े।

भारत में गिग वर्क का विस्तार

भारत में ऑनलाइन फूड डिलीवरी और ई-कॉमर्स का बाजार तेजी से बढ़ा है। ज़ोमैटो, स्विगी, अमेज़न जैसी कंपनियां गिग वर्कर्स के सहारे अपना कारोबार चला रही हैं। ज़ोमैटो की स्थापना 2008 में दीपिंदर गोयल ने की थी, जो शुरुआत में रेस्तरां मेनू की जानकारी देने वाला ऐप था। स्विगी की शुरुआत 2014 में श्रीहर्ष मजेटी, नंदन रेड्डी और राहुल जैमिनी ने की थी। 2013 में भारत में अमेज़न आई, जिसने ऑनलाइन शॉपिंग और वेब सीरीज देखने जैसी सुविधाएं दीं। इन कंपनियों ने न केवल डिजिटल क्रांति लाई, बल्कि लाखों लोगों को रोजगार भी दिया।

गिग वर्कर्स वे अस्थायी कर्मचारी होते हैं, जो किसी निजी कंपनी के लिए डिलीवरी जैसी सेवाएं देते हैं। ये फ्रीलांस या अनुबंध-आधारित काम करते हैं। 2017 में अर्न्स्ट एंड यंग के एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया के 24% गिग वर्कर्स भारत में हैं।

बिहार में गिग वर्क का प्रभाव

बिहार में शुरुआत में रोजगार के लिए पारंपरिक नौकरियों को प्राथमिकता दी जाती थी, लेकिन अब स्थिति बदल रही है। निजी कंपनियों में भी लोग रोजगार तलाशने लगे हैं। कोरोना महामारी के बाद ज़ोमैटो, स्विगी, बिग बास्केट, अमेज़न जैसी कंपनियों की मांग बढ़ी और लाखों लोग गिग वर्क से जुड़ गए। नीति आयोग की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 77 लाख लोग गिग वर्क कर रहे थे।

गिग वर्कर्स और श्रम कानून

2019 के नए श्रम संहिता के अनुसार, गिग वर्कर्स को पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी का दर्जा दिया गया है। अनुबंध श्रम अधिनियम, 1970 के तहत, गिग वर्कर्स को कैंटीन, प्राथमिक चिकित्सा जैसी सुविधाएं दी जानी चाहिए। लेकिन यह कानून अभी तक प्रभावी रूप से लागू नहीं किया गया। रोजगार मुआवजा अधिनियम, 1923 के तहत, नियोक्ता को कार्यस्थल पर होने वाली दुर्घटनाओं के लिए मुआवजा देना अनिवार्य है, लेकिन यह गिग वर्कर्स पर लागू नहीं किया गया है।

29 जून, 2024 को कर्नाटक सरकार ने 'कर्नाटक प्लेटफॉर्म-आधारित गिग वर्कर्स (सामाजिक सुरक्षा और कल्याण) विधेयक, 2024' प्रस्तावित किया, जिसमें गिग वर्कर्स के अधिकारों की सुरक्षा की बात कही गई है। झारखंड, राजस्थान और कर्नाटक में गिग वर्कर्स के लिए कुछ सुविधाएं बनाई गई हैं।

पटना में गिग वर्कर्स की हड़ताल

28 जनवरी को पटना के बिरसा मुंडा चौक, गर्दनीबाग में अमेज़न, ज़ोमैटो, स्विगी और फ्लिपकार्ट के गिग वर्कर्स ने जीआरडी एसोसिएशन के नेतृत्व में हड़ताल की। गिग वर्कर्स का कहना है कि वे 14 घंटे से अधिक समय तक काम करते हैं, लेकिन उन्हें उचित वेतन और सुरक्षा नहीं मिलती। ग्राहक अक्सर उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं, और कंपनियां उन्हें श्रमिक दर्जा नहीं देतीं।

गिग वर्कर्स की प्रमुख मांगें:

  1. ईएसआई और पीएफ की गारंटी
  2. दुर्घटना सुरक्षा कानून
  3. केंद्रीय कानून लागू करना
  4. गिग वर्कर्स को कर्मचारी का दर्जा
  5. त्रिपक्षीय बोर्ड का गठन (सरकार, कंपनियां, गिग संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ)
  6. सामाजिक सुरक्षा की गारंटी
  7. बिना नोटिस नौकरी से हटाने पर रोक
  8. लॉग-इन घंटों का न्यूनतम वेतन निर्धारण
  9. रेट कार्ड पारदर्शी बनाना और महंगाई दर के अनुसार उसमें साल में दो बार वृद्धि

महेंद्र और गिग वर्कर्स की स्थिति

डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने स्विगी के डिलीवरी एजेंट महेंद्र से बातचीत की। महेंद्र ने बताया कि उन्हें किसी भी प्रकार का मुआवजा नहीं दिया जाता। अगर वे कंपनी के सामने अपनी मांगें रखते हैं, तो उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है और उनकी आईडी ब्लॉक कर दी जाती है। अक्टूबर 2024 में कंपनी ने नए नियम लागू किए, लेकिन श्रमिकों से कोई बातचीत नहीं की। उन्हें 1 किमी के ऑर्डर पर सिर्फ 5 रुपये मिलते हैं और ग्राहक द्वारा ऑर्डर कैंसिल करने पर एक भी पैसा नहीं मिलता। उन्होंने विकलांगता के लिए मुआवजा देने की मांग की ताकि दुर्घटनाग्रस्त श्रमिक अपना छोटा व्यवसाय शुरू कर सकें।

गिग वर्कर एसोसिएशन का पक्ष

राज्य गिग वर्कर एसोसिएशन के अध्यक्ष अभिषेक कुमार ने बताया कि वे पिछले तीन वर्षों से पटना में गिग वर्कर्स के लिए काम कर रहे हैं। 29 दिसंबर 2023 को 'ब्लैक फ्राइडे कैंपेन' के तहत देशभर के 100 जगहों पर प्रदर्शन किया गया था। आरजेडी नेता सुरेंद्र राम को गिग वर्कर्स के लिए विधेयक सौंपा गया था, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। अभिषेक ने बताया कि जो श्रमिक इस आंदोलन में शामिल हुए, उनकी आईडी ब्लॉक कर दी गई। उन्होंने यह भी बताया कि कंपनियां श्रमिकों से उनकी जैकेट और रेनकोट के पैसे भी वसूलती हैं।

सरकार और कंपनियों से सवाल

गिग वर्कर्स की बढ़ती संख्या के बावजूद, उन्हें उचित अधिकार और सुरक्षा नहीं मिल रही। सरकार ने अब तक कोई स्पष्ट नीति नहीं बनाई, जिससे लाखों श्रमिक असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। क्या सरकार गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा देगी? क्या कंपनियां उनके लिए बेहतर नीतियां बनाएंगी? यह सवाल अब भी अनुत्तरित है।

 

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