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गर्मी की दोपहरी है. पटना से करीब 70 किलोमीटर दूर वैशाली जिले के एक छोटे से गांव की कच्ची सड़कों पर धूल उड़ रही है. 34 वर्षीय सीमा देवी अपने आंगन में उदास बैठी हैं. चेहरे पर चिंता और आंखों में दर्द की परछाइयां साफ नजर आ रही हैं. वे कहती हैं, "काम का बोझ, घर की गरीबी, घरवालों की ख्वाहिशें और अपनी इच्छाओं को भूल जाना, ये सब जिंदगी का हिस्सा बन गया है. मन बहुत भारी रहता है, पर बात करने वाला कोई नहीं."
सीमा देवी अकेली नहीं हैं. बिहार में हजारों महिलाएं हैं जो मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझ रही हैं. राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NMHS-2016) के अनुसार, बिहार में करीब 11.9 प्रतिशत महिलाएं मानसिक तनाव, अवसाद और घबराहट जैसी समस्याओं का शिकार हैं. वहीं, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5, 2019-21) के अनुसार बिहार में लगभग 40% महिलाएं घरेलू हिंसा का सामना करती हैं जो मानसिक स्वास्थ्य पर सीधा असर डालती है.
मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं के कारण
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. राकेश सिन्हा बताते हैं, "ग्रामीण बिहार की महिलाओं की समस्याएं बेहद जटिल हैं. गरीबी, घरेलू हिंसा, बेरोजगारी और शिक्षा की कमी मानसिक तनाव के बड़े कारण हैं. इन्हें न तो परिवार का साथ मिलता है, न समाज का."
सीतामढ़ी की सुनीता देवी बताती हैं, "जब भी मन परेशान होता है तो लोग कहते हैं, पागलपन चढ़ गया है क्या? यहां पर मानसिक स्वास्थ्य के बारे में कोई नहीं समझता."
समस्तीपुर की जया देवी कहती हैं, "खर्चों और कर्ज़े की चिंता से रातों की नींद चली गई है. डॉक्टर के पास जाने का खर्च भी नहीं उठा सकते."
दरभंगा की रेखा कुमारी बताती हैं, "मेरे पति की नौकरी नहीं रही, घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया. मन इतना घबराता है कि कभी-कभी लगता है सब छोड़कर कहीं भाग जाऊं."
बुनियादी सुविधाओं का अभाव
बिहार में महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य की विकट स्थिति की बड़ी वजह सरकारी लापरवाही और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है. राज्य के सरकारी अस्पतालों में मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की भारी कमी है. WHO के मुताबिक, प्रति एक लाख आबादी पर कम से कम एक मनोचिकित्सक होना चाहिए, जबकि बिहार में यह अनुपात बहुत कम है. बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, राज्य में केवल 158 मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ हैं, जबकि जरूरत लगभग 1000 विशेषज्ञों की है.
स्वास्थ्य कार्यकर्ता अर्चना सिंह बताती हैं, "गांव में महिलाएं अक्सर सिरदर्द, कमजोरी या अनिद्रा जैसी समस्याएं लेकर आती हैं, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की कमी के कारण सही इलाज नहीं मिल पाता."
पटना के सरकारी अस्पताल में कार्यरत मनोचिकित्सक डॉ. अमिताभ वर्मा कहते हैं, "गांव की महिलाएं यहां पहुंच ही नहीं पातीं. अक्सर परिवार की आर्थिक स्थिति उन्हें रोक देती है."
गैर-सरकारी संस्थाओं का प्रयास
कुछ गैर-सरकारी संगठन (NGOs) बिहार में महिलाओं को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं. 'मन की आवाज़' संगठन ग्रामीण इलाकों में जागरूकता अभियान चला रहा है. संगठन की सदस्य पूजा शर्मा कहती हैं, "महिलाओं को बातचीत और संवाद के जरिए मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से बाहर निकालने की जरूरत है."
मुज़फ़्फ़रपुर की एक NGO कार्यकर्ता संगीता देवी बताती हैं, "हम महिलाओं को योग और ध्यान जैसी तकनीकों से भी जोड़ रहे हैं, जिससे वे तनाव और चिंता को कम कर सकें."
सरकारी योजनाओं की वास्तविकता
हाल ही में बिहार सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान शुरू करने का एलान किया है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका प्रभाव नजर नहीं आता. पटना की मनोचिकित्सक डॉ. नीता कुमारी कहती हैं, "जरूरत है एक ऐसे नेटवर्क की जो ग्रामीण महिलाओं तक पहुंच सके. मानसिक स्वास्थ्य की सुविधाएं सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं होनी चाहिए."
ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) के तहत भी प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन अभी तक ग्रामीण इलाकों तक प्रभावी ढंग से ये योजनाएं नहीं पहुंच पाई हैं.
सामाजिक जागरूकता और शिक्षा का अभाव
मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सामाजिक जागरूकता बेहद कम है. ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक समस्याओं को सामान्य बीमारी नहीं माना जाता, बल्कि इसे शर्मिंदगी से जोड़ा जाता है. मधुबनी की रहने वाली पार्वती देवी कहती हैं, "हमारे यहां कोई खुलकर मानसिक परेशानी के बारे में बात नहीं करता, लोग ताने मारते हैं."
शिक्षा की कमी भी इस समस्या को बढ़ा रही है. बिहार की महिला साक्षरता दर मात्र 60.5 प्रतिशत (जनगणना 2011) है, जो राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे है. यह कमी जागरूकता फैलाने में बड़ी बाधा बन रही है.
समाधान की ओर कदम
मानसिक स्वास्थ्य एक व्यक्तिगत समस्या ही नहीं, बल्कि सामाजिक समस्या है. बिहार जैसे राज्य में, जहां महिलाओं की स्थिति पहले से ही चुनौतीपूर्ण है, वहां मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बेहद जरूरी है. सरकार, समाज और स्वास्थ्य संस्थाओं को मिलकर इस दिशा में गंभीर प्रयास करने होंगे. तभी सीमा देवी जैसी हजारों महिलाओं के चेहरे पर फिर से मुस्कान लौट सकेगी.
व्यक्तिगत प्रयास और समाज की भूमिका
महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य सुधार के लिए समाज और परिवार की भूमिका अहम है. घर-परिवार में समर्थन और समझ जरूरी है. समाज के लोग अगर मानसिक समस्याओं को सामान्य रोगों की तरह ही देखें और सहायता करें, तो कई समस्याएं स्वतः हल हो सकती हैं. समुदाय स्तर पर नियमित कार्यशालाएं, संवाद और जागरूकता अभियान भी बेहद महत्वपूर्ण साबित होंगे.
आगे का रास्ता
मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर व्यापक सरकारी पहल, प्रशिक्षण कार्यक्रम, गांव स्तर पर काउंसलिंग केंद्रों की स्थापना और मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल करना आवश्यक है. साथ ही, स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को मानसिक स्वास्थ्य प्रशिक्षण देकर ग्रामीण महिलाओं की मदद के लिए तैयार करना होगा. समाज को इस दिशा में जागरूक बनाने के लिए मीडिया की भूमिका भी अहम होगी.