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बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय लगभग 7 सालों से मंत्रालय संभाल रहे हैं. अपने पीआर के लिए उन्होंने प्रभात प्रकाशन से एक किताब भी लिखी. किताब का शीर्षक है- जन स्वास्थ्य का 'मंगल' काल. लेकिन इस किताब को पढ़कर कोई भी ये नहीं समझ पायेगा कि बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था मंगल काल में नहीं बल्कि अमंगल काल में चल रही है.
इस किताब में मंगल पाण्डेय हर क्षेत्र में अपनी उपलब्धियों को गिनवाते थक नहीं रहे हैं. लेकिन इस किताब में उन्होंने बिहार की एक बढ़ती बीमारी और उससे बचाव के उपाय पर अपनी मंगल राय रखना ज़रूरी नहीं समझा. और ये बीमारी कोई नज़ला या ज़ुकाम की नहीं बल्कि आपकी सांस से जुड़ी हुई है- अस्थमा. ग्लोबल बर्डन ऑफ़ डिजीज के आंकड़ों के अनुसार देश के तीन राज्यों में सबसे अधिक अस्थमा के मामले पाए गए हैं. ये राज्य हैं- उत्तर प्रदेश, बिहार और उड़ीसा. बिहार में अस्थमा मरीज़ों की संख्या 31.42 लाख अस्थमा के मरीज़ हैं, जो देश में दूसरी सबसे अधिक संख्या है. लेकिन इसके बावजूद बिहार में अस्थमा को लेकर कोई स्पेशल हेल्थ कैंपेन ज़मीन पर नज़र नहीं आता है.
जितने मरीज़ उतनी दवा की बिक्री नहीं
Pulmocare Research and Education Foundation (PURE) ने अस्थमा पर एक स्टडी की. स्टडी में जो सबसे हैरान करने वाली बात दवाइयों की बिक्री है. जितने मरीज़ बिहार में मौजूद हैं उतनी दवाओं की बिक्री ही नहीं है. बिहार में मरीज़ों की संख्या के हिसाब से कम से कम 3 करोड़ 77 लाख दवाइयों की बिक्री होनी चाहिए थी. लेकिन राज्य में पूरे साल में सिर्फ़ 19 लाख दवाइयां की बिकी हैं. इसकी दो वजहें हो सकती हैं, या तो अस्थमा मरीज़ों का इलाज ठीक से नहीं किया जा रहा है या फिर पर्याप्त मात्रा में दवाइयां मौजूद नहीं हैं.
उत्तर प्रदेश की स्थिति भी बिहार जैसी ही है. उत्तर प्रदेश में अस्थमा मरीज़ों की संख्या 40.83 लाख है. इस संख्या के हिसाब से 4 करोड़ 90 लाख दवाइयों की बिक्री होनी चाहिए थी. लेकिन उत्तर प्रदेश में पूरे साल में सिर्फ़ 40 लाख दवाइयों की ही बिक्री हुई है.
बिहार के बच्चों को सबसे अधिक ख़तरा
बिहार में अस्थमा ने बच्चों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया है. Asthma and Allergies in Bihar's School Children: Uncovering the Hidden Burden नाम की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 12% बच्चों में अस्थमा लक्षण देखें गए हैं. इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि बिहार के शहरी क्षेत्र में अस्थमा के ज़्यादा मामले (14%) देखने को मिले हैं. ग्रामीण इलाके में ये आंकड़ा 10% का है.
यारपुर बस्ती में रहने वाला सजल (बदला हुआ नाम) को सांस लेने में तकलीफ़ रहती है. पास के स्कूल से घर आने में भी उसे हफनी होने लगती है. उसकी उम्र 12 साल है. सजल की मां एक घरेलू मददगार के तौर पर काम करती हैं और उनके पिता ई-रिक्शा चलाते हैं. जब सजल को सांस लेने में तकलीफ़ बढ़ने लगी तो उनके घर वालों ने पास के नर्सिंग होम से इलाज करवाया. लेकिन सजल को तकलीफ़ में कोई कमी नहीं आयी. इसके बाद सजल को न्यू गार्डिनर अस्पताल में इलाज के लिए ले जाया गया. वहां जांच में पता चला कि उन्हें अस्थमा की परेशानी है.
सजल की मां डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए बताती हैं, "शुरू में तो समझ ही नहीं आता था कि बीमारी क्या है. सरकारी अस्पताल में बताया गया कि अस्थमा है. दवा लेने के लिए अस्पताल जाना पड़ता है जो घर से दूर है. पास के अस्पताल में दवा मिलती नहीं, और प्राइवेट में दवा महंगी मिलती है. इस वजह से कई बार दवा छूट भी जाती है. "
अब यहां आंकड़ों के खेल को समझने की ज़रूरत है. पहला आंकड़ा, बिहार दवा वितरण करने में देश में सबसे अव्वल है. दूसरा, CAG-2024 की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में OPD में हर जिला अस्पताल में 21% से लेकर 65% की कमी बताई गयी है. साथ ही IPD में 34% से 83% की कमी बताई गयी है.
"अस्पताल रोकथाम का काम कर सकती है"- डॉक्टर शकील
डेमोक्रेटिक चरखा ने मामले को बेहतर ढंग से समझने के लिए पॉलीक्लिनिक के फिजिशियन डॉक्टर शकील से बात की. उन्होंने बताया कि, "जो कैंपेन चलाती है बच्चों में खासतौर से रेस्पिरेटरी डिसीसेस में निमोनिया को लेकर के एक सीरियस काम सरकारों करती है. अस्थमा में एक रिचुअलिस्टिक काम होता है. वैसे, जब से हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर बना है, तो ये उम्मीद की जाती है कि वो अस्थमा की वहां स्क्रीनिंग करेंगे लेकिन फंक्शन टेस्ट की कोई गुंजाइश अभी है नहीं. लेकिन प्रिवेंशन का काम तो कर ही सकते हैं और साथ ही काउंसलिंग का काम कर सकते हैं."
बच्चों में बढ़ रहे मामलों पर टिप्पणी करते हुए डॉक्टर शकील कहते हैं, "एक तो कुछ जेनेटिक वजह से भी अस्थमा होता है. तो जो पेरेंट्स होंगे जिनकी फैम्ली में अस्थमा होगा उनको काउंसलिंग की ज़रुरत होगी. ख़ास तौर से जो एलर्जी बढ़ाने वाले (एलर्जेंस) होते हैं, जिनकी वजह से अस्थमा बढ़ता है. अब चाहे वो धुआं हो, डस्ट हो, गांव में चूल्हे का धुंआ हो, सड़क पर म्युनिसिपैलिटी के झाड़ू देने वाले उड़ाते हैं वो धूल हो. उनसे बचना होगा."
क्या सरकार अस्थमा के रोकथाम पर काम करेगी?
अस्थमा के मरीज़ों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार को इस मामले में ठोस कदम उठाने की ज़रुरत है. सामुदायिक स्तर पर किस तरह से इसकी जांच और रोकथाम किया जा सकता है इस पर विचार करना चाहिए. हालांकि अभी सरकार कोई भी ऐसे कदम उठाती हुई नहीं दिख रही है.