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एक ओर जहां सरकार शिक्षा के क्षेत्र में सुधार और आधारभूत संरचना के विकास को लेकर बड़े-बड़े दावे करती है, वहीं ज़मीनी हक़ीक़त इन दावों पर बड़ा सवाल खड़ा करती है. बिहार के गया जिले के खिजरसराय अनुमंडल मुख्यालय के बीचों-बीच स्थित कन्या मध्य विद्यालय खिजरसराय की जर्जर स्थिति विकास के तमाम दावों की पोल खोलती नज़र आती है.
इतिहास और वर्तमान स्थिति
1935 में स्थापित यह विद्यालय खिजरसराय प्रखंड संसाधन केंद्र के परिसर में स्थित है. यानी प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी (BEO) के कार्यालय से महज़ कुछ कदमों की दूरी पर है. लेकिन विडंबना यह है कि शिक्षा विभाग की नाक के नीचे भी इस विद्यालय की हालत बद से बदतर हो चुकी है. विद्यालय में फिलहाल 191 छात्राएं नामांकित हैं, लेकिन उनके लिए सिर्फ़ दो कमरे उपलब्ध हैं वो भी जर्जर अवस्था में. बारिश के मौसम में इन कमरों की छतों से पानी टपकता है, जिससे पठन-पाठन कार्य बुरी तरह प्रभावित होता है.
वहां पढ़ने वाली एक छात्रा बताती हैं कि "स्कूल इतना जर्जर है की हमें स्कूल जाने में डर लगता है की कब स्कूल के छत हमपर गिर जाए. बारिश में पानी टपकने से किताब और कॉपी भींग जाता है. पीने का पानी नहीं मिलेगा और मजबूरन हमें बाहर बैठ कर पढ़ना पड़ता है."
छात्राएं अक्सर खुले में शेड या झोपड़ीनुमा बरामदों के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं. कई बार मौसम की मार से पढ़ाई पूरी तरह ठप हो जाती है. शिक्षकों का कहना है कि विद्यालय की इस हालत के बावजूद विभागीय अधिकारी आंख मूंदे बैठे हैं.
शिक्षकों की कमी और अव्यवस्था
विद्यालय में केवल दो शिक्षक और एक प्रधानाध्यापक तैनात हैं. 191 छात्राओं के लिए यह व्यवस्था बेहद नाकाफी है. शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) के प्रावधानों के अनुसार प्रत्येक 30 छात्रों पर एक शिक्षक होना चाहिए, लेकिन यहां एक शिक्षक पर लगभग 95 छात्राओं का भार है.
प्रधान शिक्षक सतीश चंद्र वर्मा ने बताया कि "विद्यालय की स्थिति सुधारने के लिए कई बार शिक्षा विभाग को पत्र भेजे गए, लेकिन आज तक कोई ठोस पहल नहीं हुई.शीघ्र कार्रवाई नहीं की गई तो विद्यालय की स्थिति और भी भयावह हो जाएगी."
हालांकि विद्यालय में शौचालय की स्थिति अपेक्षाकृत ठीक है, लेकिन अन्य बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. न पीने के पानी की समुचित व्यवस्था है, न ही खेलकूद या अन्य सहशैक्षणिक गतिविधियों के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं. विद्यालय में लाइब्रेरी, कंप्यूटर कक्ष, विज्ञान प्रयोगशाला जैसी सुविधाओं का तो नामोनिशान तक नहीं है.
एनसीईआरटी की एफएसएल रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के 19% सरकारी स्कूलों में आज भी बच्चों को पीने का साफ़ पानी नहीं मिलता. कई स्कूलों में कुएं का पानी ही एकमात्र स्रोत है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है. देशभर में 20% स्कूलों में अभी भी यही हाल है. 79% स्कूलों में चापाकल की सुविधा मौजूद है.
लेकिन क्या यह पर्याप्त है? रिपोर्ट बताती है कि 15% स्कूलों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग से पानी स्टोर कर उसे पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जबकि 65% स्कूलों में नल का जल उपलब्ध है. परंतु यह जल स्वच्छ और शुद्ध है या नहीं, इस पर सवाल बना रहता है.
यूडायस रिपोर्ट के अनुसार, 2023-24 में बिहार के केवल 11.6% सरकारी स्कूलों में ही कंप्यूटर उपलब्ध हैं. इनमें से सिर्फ 10.9% विद्यालयों में कंप्यूटर वास्तव में कार्य कर रहे हैं. वहीं, निजी विद्यालयों में यह संख्या 68.3% है, जिसमें से 64.6% विद्यालयों में कंप्यूटर का उपयोग पढ़ाई के लिए किया जाता है. सरकारी और निजी विद्यालयों के बीच यह बड़ा अंतर यह दर्शाता है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को तकनीकी शिक्षा से दूर रखा जा रहा है, जिससे उनके भविष्य की संभावनाएं सीमित हो रही हैं.
प्रशासन की प्रतिक्रिया
इस मुद्दे पर जब खिजरसराय की बीडीओ कुमारी सुमन से बात की गई तो उन्होंने विद्यालय की जर्जर स्थिति से अनभिज्ञता जताई. उन्होंने कहा कि यदि वास्तव में ऐसी स्थिति है, तो शिक्षा विभाग के कनिष्ठ अभियंता (Junior Engineer) से बात कर तत्काल स्थिति का मूल्यांकन कराया जाएगा और आवश्यक कार्रवाई की जाएगी.
शिक्षिका संगीता कुमारी ने चिंता जताते हुए कहा कि “ जब तक विद्यालयों में मूलभूत सुविधाएं नहीं होंगी, तब तक पढ़ाई का स्तर सुधरना असंभव है. उन्होंने कहा कि बच्चों को पढ़ाई के दौरान निरंतर असुविधा का सामना करना पड़ता है,जिससे उनका शैक्षणिक विकास बाधित हो रहा है.”
क्या इन सारे मुश्किलों से छात्राएं छोड़ती हैं स्कूल जाना?
खिजरसराय के विद्यालय की छात्रा से जब हमने बात की तो उसने बताया कि "हमें क्लास के बाहर बैठाया जाता है. इतने बच्चे हैं की जब दूसरे बच्चों का क्लास होता है तो हमारे पास करने के लिए कुछ भी नहीं होता है. हमारे स्कूल में मात्र दो शिक्षक हैं, और सुविधा कुछ भी नहीं. मुझे स्कूल जाने में डर लगता है."
जब हमने बच्चियों के अभिभावक से बात की तो उन्होंने बताया कि स्कूल की स्थिति जर्जर है और हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं की प्राइवेट स्कूल भेज सके और ये सरकारी स्कूल भेजना मतलब जान हथेली पर लेकर घूमना इसीलिए हम अपनी बच्चियों को कभी कभी ही स्कूल भेजते हैं.
यू-डाइस के 2014-15 से लेकर 2016-17 के आंकड़े देखें तो बिहार राज्य में सबसे ज़्यादा बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़ रहे हैं. साल 2014-15 में माध्यमिक स्तर पर कुल बच्चों का 25.33%, साल 2015-16 में 25.90% और 2016 -17 में 39.73% बच्चों ने स्कूल छोड़ा है.
हालांकि साल 2019-20 के आंकड़ों के अनुसार बिहार में ड्राप आउट की संख्या कम होकर 21.4% पर पहुंची है. लड़कियों में माध्यमिक (9-10) कक्षाओं में ड्राप आउट की संख्या अभी भी चिंताजनक है. साल 2019-20 के आंकड़ों के अनुसार 22.7% लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं.
समस्या का व्यापक प्रभाव
विद्यालय की बदहाल स्थिति न केवल छात्राओं की पढ़ाई पर असर डाल रही है, बल्कि उनके मनोवैज्ञानिक विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है. एक सुरक्षित और सुविधाजनक वातावरण शिक्षा की बुनियादी जरूरत है. लगातार खराब माहौल में पढ़ाई करने से छात्राओं का आत्मविश्वास और सीखने की क्षमता दोनों प्रभावित होती हैं.
यह विडंबना ही है कि खिजरसराय प्रखंड संसाधन केंद्र, जहां से पूरे प्रखंड के विद्यालयों का संचालन और निगरानी होती है, उसी परिसर में स्थित एक विद्यालय जर्जर अवस्था में पड़ा हुआ है. इससे साफ जाहिर होता है कि अधिकारियों की प्राथमिकता में विद्यालयों की वास्तविक स्थिति का आंकलन और सुधार नहीं है.
सरकार से अपेक्षा
शिक्षा के अधिकार को केवल कागजों पर लागू करने से समाज में वास्तविक परिवर्तन नहीं आएगा. खिजरसराय के कन्या मध्य विद्यालय की हालत इस बात का प्रतीक है कि जब तक जमीनी स्तर पर ईमानदारी से काम नहीं किया जाएगा, तब तक शिक्षा का स्तर ऊंचा नहीं उठेगा. सरकार और प्रशासन को तत्काल प्रभाव से विद्यालय भवन का निर्माण कार्य शुरू कराना चाहिए, शिक्षकों की नियुक्ति करनी चाहिए और मूलभूत सुविधाओं को सुनिश्चित करना चाहिए, ताकि छात्राओं को एक सुरक्षित और प्रेरणादायक वातावरण मिल सके.