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खेलो इंडिया का आयोजन इस साल बिहार और दिल्ली में किया गया. खेलो इंडिया का आयोजन 4 मई से लेकर 15 मई तक किया गया. इस साल के आयोजन में बिहार ने ऐतिहासिक प्रदर्शन किया. इस बार बिहार ने 36 मेडल हासिल किये हैं. पिछले सात सालों से चल रहे खेलो इंडिया में बिहार ने कुल 34 मेडल हासिल किये थें. इस लिए इस बार बिहार का प्रदर्शन ऐतिहासिक माना जा रहा है. 36 मेडल के साथ बिहार इस साल 14वें स्थान पर है. लेकिन क्या इतना काफ़ी है?
खेल को लेकर बिहार सरकार की उदासीनता कोई नई नहीं है. लेकिन ऐसे में पंचायत और स्कूल स्तर पर बनी योजनाओं को अगर सही से कार्यान्वित किया जाता तो शायद बिहार का प्रदर्शन बेहतर हो सकता था.
स्कूलों में खेल का मैदान तक मौजूद नहीं
अगर बिहार की राजधानी पटना की बात करें जिले में 3421 विद्यालय (1852 प्राथमिक, 1146 मध्य और 423 उच्च विद्यालय) हैं. ऐसे में जिले के 2826 विद्यालय में खेल का मैदान ही मौजूद नहीं है. खेल के किट के लिए विभाग की तरफ़ से पैसे भी दिए गए हैं, किट ख़रीदी भी गयी. लेकिन खेल का मैदान नहीं होने की वजह से बच्चे बस उन्हें रखा हुआ ही देखते हैं. विभाग की ओर से प्राथमिक विद्यालय को 5 हज़ार रूपए, मध्य विद्यालय को 10 हज़ार रूपए और उच्च विद्यालय को 25 हज़ार रूपए की राशि वितरित की गयी थी. उसके बाद टेंडर के अनुसार एजेंसी ने खेल की सामग्री भी मुहैया करवा दी.
लेकिन इसके बाद खेल में क्या प्रगति हुई? कुछ भी नहीं. क्योंकि बच्चों को उनके हुनर को दिखाने का मौका ही नहीं दिया गया. ये सभी बच्चे
कमज़ोर आर्थिक स्थिति के घरों से आते हैं. इनके पास इतने पैसे नहीं होते हैं कि वो खेल की सामग्री ख़रीद कर खेल के मैदान में जा सकें.
वहीं दूसरी ओर प्राइवेट स्कूलों में खेल की बेहतर सामग्री के साथ ही खेल के मैदान और खेल शिक्षक भी मौजूद होते हैं. इसलिए उनके पास कई मौके होते हैं. लेकिन यही मौके सरकारी स्कूल के बच्चों को ये मौके नहीं मिल पाते हैं.
पटना के करबिगहिया में स्थित कन्या मध्य विद्यालय के कैंपस में 5 स्कूल मौजूद हैं. लेकिन जगह की कमी की वजह से यहां पर खेल का काफ़ी छोटा मैदान है. ऐसे में उनके खेल की सामग्री पड़े-पड़े धूल खा रही है. लेकिन विभाग इसकी ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. इस स्कूल में रिया (बदला हुआ नाम) कक्षा 7वीं में पढ़ती हैं. उनकी रुचि वॉलीबॉल खेलने में है. लेकिन बिना खेल मैदान और सामग्री के वो अपने सपनों को साकार नहीं कर पा रही हैं. रिया बताती हैं "स्कूल में तो खेल का मैदान है ही नहीं. थोड़ी सी खाली जगह है, उसमें भी 5 स्कूल चलता है तो जगह को लेकर मारा-मारी रहती है. हम कई बार टीचर को बोले हैं, लेकिन टीचर लोग कहते हैं कि मैदान कहां से लेकर आएं. हमको नहीं लगता है कि हम कभी खेल पाएंगे."
खेल के प्रति विभागीय उदासीनतान की कहानी पुरानी है
बिहार के 38 जिलों में से केवल 17 जिलों में ही जिला खेल पदाधिकारी हैं. एकलव्य केंद्र जैसे संस्थानों को बंद कर दिया गया है. नतीजतन, खिलाड़ी या तो अपने सपनों को त्याग कर जीविका के अन्य साधन खोजने पर मजबूर हो गए हैं या राज्य से पलायन कर रहे हैं.
सरकार की ओर से खिलाड़ियों को ना तो सुविधाएं मिलती हैं, ना ही प्रोत्साहन. यहां तक कि बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी भी पूरी नहीं की जाती. राज्य में खेलों की स्थिति इतनी दयनीय है कि कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी रोज़गार के कारण अपने करियर को छोड़ने पर मजबूर हैं.
खेलो इंडिया रिपोर्ट के अनुसार, टोक्यो ओलंपिक 2020 में बिहार से एक भी खिलाड़ी ने भाग नहीं लिया, जबकि हरियाणा से 29 और पंजाब से 16 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया. यह आंकड़े बिहार की खेल व्यवस्था की असफलता को स्पष्ट करते हैं.
2023-24 के बजट में बिहार ने शिक्षा, खेल, कला और संस्कृति के लिए 42,381 करोड़ रुपए आवंटित किए. BSSA का बजट 2022 के 30 करोड़ रुपये से बढ़ कर 2024 में 680 करोड़ रुपये हो गया है. लेकिन यह राशि खेलों पर खर्च होती दिखती नहीं. राजस्थान ने अपने खेल विभाग के लिए 2,500 करोड़ रुपए, और ओडिशा ने 1,217 करोड़ रुपए खर्च किए. साल 2025-26 में खेल बजट को बढ़ा कर 568 करोड़ रूपए का किया गया है. ये पिछले खेल बजट से 88 करोड़ रूपए अधिक है.
स्पोर्ट्स सिटी बनाने की योजना कितनी सफ़ल होगी?
बिहार के पुनपुन में बिहार सरकार ने स्पोर्ट्स सिटी बनाने की घोषणा की है. साल 2025-26 सत्र में इस योजना को पास किया गया है. साथ ही ये दावा किया जा रहा है कि बिहार की स्पोर्ट्स सिटी में ओलिंपिक स्तर की तैयारियां करवाई जाएंगी. 100 एकड़ में बनने वाले स्पोर्ट्स सिटी में मल्टी-स्पोर्ट्स स्टेडियम, स्विमिंग पूल कॉम्प्लेक्स, खेल शिक्षा और प्रशिक्षण केंद्र, रिटेल और मनोरंजन सुविधाएं भी होंगी.
सरकार को ज़रुरत है खेल पर ध्यान देने की
राज्य सरकार को चाहिए कि वह अपनी खेल संस्कृति को पुनर्जीवित करें. खिलाड़ियों के संघर्ष को पहचाने और उनके सपनों को पूरा करने में उनकी मदद करे. खेल केवल एक शौक नहीं, बल्कि एक ऐसा माध्यम है, जो राज्य और देश को गौरवान्वित कर सकता है. खिलाड़ियों की अनदेखी करना, केवल उनके सपनों को तोड़ना नहीं, बल्कि पूरे राज्य की प्रगति को बाधित करना है.