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भारत एक लोकतांत्रिक देश है. इसके लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि छात्र विश्वविद्यालय स्तर से ही इसकी मजबूती को महसूस करें. उनमें अच्छे और बुरे में चुनाव करने की समझ विकसित हो. गलत के विरोध में एकजुट होकर सवाल करने की हिम्मत विकसित हो. छात्रसंघ चुनाव विश्वविद्यालयी छात्रों को यह मौका देता है. छात्रसंघ चुनाव पूरे भारतीय राजनीति को प्रभावित करता है. बिहार और देश की राजनीति में छात्र नेताओं की अहम भूमिका रही है. बिहार के राजनीतिक पटल के केंद्र बिंदु आज भी वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव हैं. इन दोनों ने अपना राजनीतिक सफर पटना विश्वविद्यालय के छात्र राजनीति से ही शुरू किया था. जयप्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन से निकले ये दोनों नेता छात्र राजनीति के सशक्त उदाहरण हैं.
छात्र संघ चुनाव का इतिहास
पटना विश्वविद्यालय में छात्र संघ की स्थापना वर्ष 1956 में हुई. शुरुआती दिनों में यह चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से संपन्न होता था. वर्ष 1968 तक प्रतिनिधियों का चयन नामांकन और चयन प्रणाली से होता रहा, लेकिन इस प्रक्रिया में छात्रों की सीधी भागीदारी नहीं थी. वर्ष 1969 में इस प्रणाली के खिलाफ छात्रों ने बगावत शुरू की. उस समय के चर्चित छात्र नेता लालू प्रसाद यादव, रामजतन सिन्हा, आदित्य पांडे जैसे नेताओं ने प्रत्यक्ष मतदान की मांग को लेकर बड़ा आंदोलन खड़ा किया. उनका तर्क था कि जब देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था है, तो छात्र संघ चुनावों में भी छात्रों को अपने प्रतिनिधि सीधे चुनने का अधिकार मिलना चाहिए. लगातार विरोध-प्रदर्शन, रैली और धरना के बाद 1970 में पटना विश्वविद्यालय में पहली बार प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली लागू की गई.
छात्र संघ चुनाव और बड़े आंदोलन
छात्र संघ चुनाव का इतिहास आंदोलनों से भरा पड़ा है. 1970 में प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली लागू कराने के लिए छात्रों को लंबा संघर्ष करना पड़ा था. 1984 में जब चुनाव में हिंसा हुई, तब विश्वविद्यालय प्रशासन ने चुनावों पर अनिश्चितकालीन रोक लगा दी. इसके बाद 1984 से लेकर 2012 तक पटना विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव नहीं हुए. इस लंबे अंतराल के दौरान कई छात्र आंदोलनों ने जन्म लिया.
वर्ष 2012 में छात्र संगठनों ने एकजुट होकर चुनाव बहाली के लिए जबरदस्त आंदोलन किया. विश्वविद्यालय गेट पर अनशन, भूख हड़ताल, तालाबंदी जैसे आंदोलन हुए. आखिरकार, प्रशासन को झुकना पड़ा और 2012 में छात्र संघ चुनाव बहाल किए गए. इस दौरान छात्रों ने यह स्पष्ट कर दिया कि पटना विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति को खत्म नहीं किया जा सकता. यहां की छात्र राजनीति सिर्फ कैंपस पॉलिटिक्स नहीं है, यह बिहार की राजनीति का भविष्य तैयार करने की पाठशाला है.
2024-25 में फिर आंदोलन का दौर
2024 में छात्र संघ चुनाव को लेकर फिर से गतिरोध हुआ. प्रशासन लंबे समय तक चुनाव तिथि घोषित करने से बचता रहा. नवंबर 2024 में छात्रों ने फिर आमरण अनशन किया. कई छात्र बीमार पड़ गए, लेकिन उनकी मांग स्पष्ट थी – चुनाव तिथि घोषित की जाए. छात्र संगठनों ने चुनाव की घोषणा के लिए पूरे पटना विश्वविद्यालय को आंदोलन का केंद्र बना दिया. धरना, जुलूस और सोशल मीडिया कैंपेन के दबाव में आखिरकार फरवरी 2025 में प्रशासन ने चुनाव की घोषणा कर दी.
चुनावी षड्यंत्र का आरोप
छात्र संघ के उम्मीदवार मनोरंजन राजा ने कहा कि "ईद से 5 दिन पूर्व और 5 दिन बाद मतदान की तिथि होनी चाहिए." मनोरंजन ने बताया कि उन्होंने पहले भी यह मांग की थी कि तिथि का निर्धारण त्योहार का ख्याल रखकर किया जाए, परंतु इस बात को अनदेखा किया गया है. उन्होंने इसे एक चुनावी षड्यंत्र बताया और कहा कि यह एक खास वर्ग के छात्र-छात्राओं को मतदान से वंचित रखने की कोशिश है".
आंदोलन की चेतावनी
ABVP के उम्मीदवार रिंकल यादव ने कहा कि "उम्मीदवार को तैयारी करने के लिए समय सीमा बढ़ानी चाहिए." उन्होंने बताया कि पटना विमेंस कॉलेज में 29 मार्च को होने वाला दीक्षांत समारोह को पूर्व निर्धारित कर 28 मार्च को कर दिया गया है. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर चुनाव की तिथि आगे नहीं बढ़ाई गई, तो वे आंदोलन करेंगे".
विधानसभा में भी उठा पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ का मुद्दा
इस मामले पर पालीगंज विधायक संदीप सौरभ ने भी बिहार विधानसभा में इसका मुद्दा उठाते हुए कहा की "छात्रों के लंबे संघर्ष के बाद पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव 2024-25 की घोषणा हुई, लेकिन मतदान की तिथि 29 मार्च, ऐसी रखी गई कि विश्वविद्यालय के मुस्लिम छात्र मतदान और पूरी चुनावी प्रक्रिया से वंचित रह जाएँ। 28 मार्च को अलविदा जुमा और 31 मार्च (संभावित) को ईद के कारण कई छात्र अपने गाँव-घर चले जायेंगे और चुनावी प्रक्रिया में शामिल नहीं हो पाएंगे".