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बिहार में बीते कई दिनों से हो रही बेमौसम बरसात ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है. कुछ दिनों पहले तक बिहार में मौसम गर्म बना हुआ था, लेकिन एकाएक आई बारिश और आंधी ने फ़सलों को काफ़ी नुकसान पहुंचाया है. बिहार के कई क्षेत्रों में ओलावृष्टि भी हुई है. इससे कहीं-न-कहीं किसानों की उपज पर भी प्रभाव पड़ना तय है.
गेहूं और मक्का को हुआ है सबसे ज़्यादा नुकसान
बदलते मौसम के कारण हुई बारिश ने सबसे ज़्यादा प्रभावित गेहूं और मक्का की फ़सल को किया है. इस महीने तक करीब-करीब रबी फ़सल लगभग पूरी तरह तैयार हो जाती है. फ़सल को तैयार करने में किसानों को लगभग 6 महीने का समय लग जाता है. ऐसे में इस बेमौसम बरसात से किसानों को काफ़ी नुकसान हुआ है.
मौसम के बदलाव से नुकसान की मार झेल रहे किसान, कर्मवीर जी से हमने बात की. उन्होंने हमें बताया कि "8 से 10 बीघा जमीन पर हमने मक्का लगाया था. हमारी फ़सल पूरी तरह से तैयार हो चुकी थी लेकिन बारिश से लगभग-लगभग सारी फ़सल बर्बाद हो चुकी है. इस खेती को लगाने में हमने अपना पूरा पैसा इन्वेस्ट कर दिया, लेकिन फिर भी नतीजा कुछ नहीं निकला. उल्टा इस साल भी हमलोगों को नुकसान ही झेलना पड़ गया."
फ़सलों के ग्रोथ रेट पर भी पड़ सकता है बुरा असर
बिहार की लगभग 80% आबादी खेती से जुड़ी है. ऐसे में इसका प्रभाव न केवल एक जनसमूह पर पड़ेगा बल्कि इससे सरकार का बजट भी प्रभावित होना तय है. बात अगर राज्य के फायदे की करें तो बिहार की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान 20 फ़ीसदी से ज़्यादा का है. साल 2023-24 में कृषि क्षेत्र में 10.66% की वृद्धि हुई जो साल 2022-23 की तुलना में कम है. साल 2022-23 में यह आंकड़ा 18.06% था. ऐसे में इस साल भी ग्रोथ रेट का संकट गहराता नजर आ रहा है.
बदलते मौसम से फ़सलों के ग्रोथ रेट पर किस प्रकार असर पड़ा है, यह समझने के लिए हमने मौसम वैज्ञानिक राजीव से बात की. उन्होंने हमें बताया कि "कई फैसले ऐसी होती है जो तापमान बढ़ने से प्रभावित होती है. जैसे अगर गेहूं और मूंग की बात करें तो वर्तमान समय में जो तापमान है वह बिल्कुल ठीक है. अगर तापमान इससे अधिक बढ़ता है तो गेहूं और मूंग के दाने सिकुड़ जाएंगे. इनका वजन भी कम हो जाएगा. तेज बारिश और आंधी के कारण यह फ़सल जमीन पर टूट कर गिर जाते हैं. जिससे उनका स्वाद भी ख़राब हो जाता है. इस प्रकार एक बड़ी स्केल पर अगर देखा जाए तो ग्रोथ रेट पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता ही है."
आंधी से फलों का भी हुआ है काफ़ी नुकसान
बेमौसम बरसात और आंधी से सिर्फ़ अनाज पर ही नहीं बल्कि फलों पर भी बुरा असर पड़ा है. बिहार के कई क्षेत्रों में आम और लीची के बड़े बगानों को भी भारी नुकसान पहुंचा है. आम उत्पादक राज्यों में बिहार देश के तीसरे नंबर पर आता है. लगभग 8 लाख मीट्रिक टन आम की उपज बिहार अकेले करता है.
इसके अलावा लीची उत्पादन के लिए भी बिहार काफ़ी प्रसिद्ध है. कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में लीची का उत्पादन औसतन 5 लाख टन से अधिक है. ऐसे में फलों की खेती पर भी बुरा असर पड़ा है. फलों को हुए नुकसान पर किसान नेता अशोक बताते हैं कि "आंधी-बारीश से फलों पर तो बुरा प्रभाव पड़ ही रहा है. खगड़िया से सटे आसपास के जिलों में कई बगानों में तो आम पकने से पहले ही बर्बाद हो गए. अगर उनको बाहर से पकाया भी जाए तो भी उसका स्वाद उतना अच्छा नहीं होगा. आम और लीची को बहुत संतुलित मौसम की जरूरत होती है. इस तरह का मौसम फलों को असमय ही ख़राब कर देता है और उत्पादन को भी प्रभावित करता है."
मुआवज़े से नहीं होती नुकसान की भरपाई
वैसे तो बिहार सरकार प्राकृतिक आपदाओं से बर्बाद होने वाली फ़सलों पर किसानों को 8000 रुपए प्रति हेक्टेयर मुआवजा देती है, लेकिन यह सिर्फ़ कहने की बात है. सरकार की यह योजना भी किसानों के लिए कुछ कम पेचीदा नहीं है. यदि फ़सल 33% या उससे अधिक बर्बाद होती है, तभी किसानों को 8000 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से मुआवजा मिलता है. यदि नुकसान 20% हुआ है, तो मुआवजा भी 7500 रुपए प्रति हेक्टेयर मिलेगा. यदि नुकसान और काम हुआ तो राशि भी काम हो जाएगी.
इस राशि में भी आंचल स्तर पर काफ़ी भ्रष्टाचार है. इस विषय पर विस्तार से जानकारी देते हुए कर्मवीर जी हमें बताते हैं कि "मुआवज़े की राशि से कुछ फायदा नहीं होता. 25,000 की लागत पर मुश्किल से 2000 से 2500 तक मुआवजा ही मिल पाता है. उस राशि में भी 500 रुपए प्रखंड में बैठे कृषि सहायक को देना पड़ जाता है. यदि उसको पैसे नहीं देंगे तो वह मुआवज़े के लिए नाम आगे बढ़ता ही नहीं है."
केंद्र की फ़सल बीमा योजना नहीं है बिहार में लागू
यह बात बिल्कुल सही है कि भारत में मौसम के मिजाज़ का कोई भरोसा नहीं. लेकिन इस बदलते मौसम की मार से सबसे ज़्यादा प्रभावित किसान ही होते हैं. किसानों की इस समस्या के हल के रूप में केंद्र सरकार फ़सल बीमा योजना को लेकर आई. इस योजना के तहत होने वाली बीमा से किसानों का फ़सल नष्ट होने के 72 घंटे के भीतर कृषि विभाग द्वारा जांच के बाद उन्हें मुआवज़ा मिल जाता है.
लेकिन बिहार सरकार ने अब तक इस योजना को राज्य में लागू नहीं किया है. इस विषय पर किसान नेता अशोक प्रसाद ने हमें बताया कि "राज्य सरकार जानती है कि अगर उसने इस योजना को बिहार में लागू किया तो उसे 6000 रुपए प्रति व्यक्ति केंद्र सरकार को देना होगा. यह 6000 रुपए बचाने के लिए राज्य सरकार इस योजना को यहां लागू ही नहीं करती है."
सरकारी तंत्र की निष्क्रियता से किसानों का निराश होना स्वाभाविक
कहने को तो इस देश में जय जवान, जय किसान का नारा बच्चों को बचपन से बताया और पढ़ाया जाता है. लेकिन किसानों की वास्तविक हालात क्या हैं, अगर यह उन बच्चों को मालूम चल जाए तो वह भी इस नारे को लगाने से पहले सरकार से 10 सवाल पूछेंगे. स्थिति यह है कि किसान अपनी लागत भी लगाता है, मेहनत भी करता है, नुकसान भी उठाता है और अंत में न्यूनतम मुआवज़े पर संतोष करके बैठ जाता है.
अगर यही दशा बनी रही तो कृषि भारत के विकास का नहीं बल्कि किसानों के रोने का एक मातमी मंच बनकर रह जाएगा.