9 नवंबर 2023 को आरक्षण सीमा संबंधी विधेयक विधानमंडल के दोनों सदन, विधानसभा और विधान परिषद, से पारित कर दिया गया. राज्यपाल की मंज़ूरी के बाद 21 नवंबर को इसे बिहार गजट में प्रकाशित कर पूरे राज्य में लागू कर दिया गया. हालांकि समानता के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए इसका विरोध शुरू हुआ.
कोर्ट में याचिकाकर्ता ने अपना पक्ष रखते हुए कहा सरकार का यह फ़ैसला संविधान के अनुच्छेद 16(1) और अनुच्छेद 15(1) का उल्लंघन करता है. अनुच्छेद 15(1) किसी भी तरह के भेदभाव पर लगाम लगाता है जबकि अनुच्छेद 16(1) राज्य के तहत किसी भी कार्यालय में रोजगार या नियुक्ति में नागरिकों को समानता का अवसर प्रदान करता है.
याचिकाकर्ता ने कोर्ट में तर्क दिया कि राज्य सरकार आबादी के बजाए, समाज में आर्थिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण दे.
कोर्ट ने इस मुद्दे पर 11 मार्च को सुनवाई पूरा होने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. वहीं 20 जून को मुख्य न्यायधीश के.विनोद चंद्रन एवं जस्टिस हरीश कुमार की बेंच ने बिहार आरक्षण (SC-ST और OBC के लिए) संसोधन अधिनियम, 2023 तथा बिहार (शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए) आरक्षण संशोधन अधिनियम, 2023 को रद्द कर दिया.
सरकारी पदों पर होने वाली बहाली पर पड़ेगा असर
जातिगत जनगणना(Caste Census) के बाद जारी हुई रिपोर्ट के अनुसार राज्य में पिछड़ा वर्ग की आबादी 27.12% जबकि अति पिछड़ा वर्ग की आबादी 36% बताई गयी थी. इसके अनुसार सम्मिलित रूप से इनकी संख्या 63 फ़ीसदी से ज्यादा हो गई. बिहार सरकार ने इसी आधार पर आरक्षण सीमा 50 फीसदी से बढ़ाकर 65% कर दिया. जिसमें अनुसूचित जाति को मिल रहे 16% आरक्षण को बढ़ाकर 20%, अनुसूचित जनजाति को ली रहे 1% आरक्षण को 2%, पिछड़ा वर्ग को मिलने वाले 12% आरक्षण को 18% और अति पिछड़ा वर्ग को मिल रहे 18% आरक्षण को बढ़ाकर 25% कर दिया गया था.
राज्य में पहले से ही केंद्र द्वारा आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्ग से आने वाले सवर्णों के लिए 10% आरक्षण तय है जिसके कारण आरक्षण की सीमा बढ़कर 75% हो गई थी. ऐसे में पटना हाईकोर्ट के फ़ैसले के बाद राज्य में एक बार फिर से आरक्षण की पुरानी नीति ही प्रयोग में रहेगी.
आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए नीतीश कुमार एक बार फिर सक्रिय हो गये हैं. नीतीश कुमार ने सात निश्चय योजना- पार्ट 2 के तहत 10 लाख नौकरी देने का लक्ष्य रखा था. जिसमें से 5.16 लाख लोगों को सरकारी नौकरी मिल चुकी हैं. बीते 17 जून को नीतीश कुमार ने बचे हुए लक्ष्य को साल 2025 तक पूरा किए जाने की बात कही है. वहीं अगले तीन महीनों में 1.99 लाख सरकारी नियुक्तियां लाये जाने की बात कही गई है.
ऐसे में जब राज्य में वृहत स्तर पर नियुक्तियां होने वाली है. बढ़े हुए आरक्षण सीमा पर रोक लगना ज़ाहिर तौर पर छात्रों को प्रभावित करेगा.
दलित छात्रों की नौकरी पर पड़ेगा असर
नालंदा जिले के धुरगांव के रहने वाले रोहित कुमार पटना विश्वविद्यालय से स्नातक कर रहे हैं. रोहित विश्वविद्यालय के ही आंबेडकर हॉस्टल में रह कर स्नातक के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षा एसएससी की भी तैयारी करते हैं. रोहित बताते हैं "जब सरकार ने आरक्षण का दायरा बढ़ाने की मंज़ूरी दी तो मुझे बहुत ख़ुशी हुई. हमारे जैसे छात्र जो गांव से पटना पढ़ने और तैयारी करने आते हैं, काफ़ी दबाव में रहते हैं. पहला दबाव परिवार और समाज का रहता है और दूसरा परीक्षा में पास करने का. क्योंकि कॉम्पीटिशन बहुत ज़्यादा है. आरक्षण बढ़ने से थोड़ी उम्मीद जगी थी.”
अधिकांश समुदाय जो आरक्षण का दायरा बढ़ने से नाराज़ हैं, वो सवर्ण समुदाय से ताल्लुक रखते हैं.
नीतीश कुमार का अगला कदम क्या होगा?
राजद और कांग्रेस के सहयोग के साथ महागठबंधन की सरकार चलाने वाले नीतीश कुमार के लिए, जातिगत जनगणना करवाना और उससे भी बड़ा उसकी रिपोर्ट जारी करना बड़ी उपलब्धि रही थी. जातिगत रिपोर्ट जारी कर नीतीश कुमार(Nitish Kumar) ने उस समय केंद्र और मोदी सरकार पर करारा प्रहार किया था.
लेकिन राजनीति में समीकरण तेजी से बदलते हैं. अपना कद और अस्तित्व बनाए रखने के लिए नेता, पार्टी और सहयोगी बदलते रहते हैं. वहीं नीतीश कुमार सहयोगी बदलने के मामले में कुछ ज्यादा ही चर्चित हैं. लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल होकर नीतीश ने इंडिया गठबंधन का समीकरण बिगाड़ दिया. नहीं तो केंद्रीय राजनीति में इस बार कुछ बड़ा होने की उम्मीद थी.
हालांकि अब नीतीश कुमार केंद्र के मुख्य सहयोगी हैं तो क्या ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि बिहार में आरक्षण का दायरा बढ़ सकता है. क्योंकि अगर केंद्र सरकार चाहे तो इस विधेयक को नौवीं अनुसूची में डाल सकता है.
वहीं एक रास्ता सुप्रीम कोर्ट जाने का भी है. उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी. वहीं पूर्व उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी सरकार को घेरते हुए कहा कि अगर राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट नहीं जाएगी तो राजद जायेगा. साथ ही केंद्र पर आरोप लगाते हुए कहा कि नौवीं अनुसूची में डालने का अनुरोध पहले ही किया गया था लेकिन केंद्र ने इस पर कोई सुनवाई नहीं की.
नीतीश कुमार के सामने आगमी विधानसभा चुनाव खड़ा है. अगर विपक्ष इस मुद्दे को उठाने में कामयाब रहा कि नीतीश कुमार भी आरक्षण विरोधी हैं, तो उन्हें इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है. वहीं केंद्र अगर बिहार में आरक्षण का दायरा बढ़ाने की मंज़ूरी देता है, तो दूसरे राज्यों से भी ऐसी मांगे उठ सकती हैं. ऐसा में यह देखना होगा कि केंद्र की मोदी सरकार और नीतीश कुमार इस असमंजस से कैसे बाहर निकलते हैं.
क्या है नौवीं अनुसूची?
साल 1951 में जवाहर लाल नेहरु द्वारा जब भूमि सुधार अधिनियम लाया जा रहा था. तब पहले संविधान संशोधन के तहत इसे संविधान में जोड़ा गया था. ताकि उन कानूनों को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सके. पहले संशोधन में इस सूची में 13 कानून को जोड़ा गया. बाद में कई अन्य संशोधनों के बाद इस अनुसूची में 284 कानून संरक्षित हो गए हैं.
तमिलनाडू, महाराष्ट्र, राजस्थान,छतीसगढ़, ओडिशा और बिहार जैसे राज्य जो अपने यहां आरक्षण का दायरा बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं. अक्सर कानूनी फ़ैसलों से बचने के लिए अपने बनाए कानून को नौवीं अनुसूची में डलवाने का दबाव बनाते हैं.