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बिहार में भूमिगत जल का स्तर लगातार गिर रहा है, ख़ासकर शहरी क्षेत्रों में. बढ़ती आबादी, अनियंत्रित जल दोहन, कंक्रीट संरचनाओं का विस्तार और जल संचय की अपर्याप्त व्यवस्था इस समस्या को और विकराल बना रहे हैं.
केंद्रीय भूजल बोर्ड और लघु जल संसाधन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, पटना सहित कई जिलों में भूजल स्तर खतरनाक रूप से नीचे चला गया है. अगर जल दोहन पर जल्द रोक नहीं लगाई गई, तो आने वाले वर्षों में बिहार गंभीर जल संकट का सामना कर सकता है.
पटना में भू-जल स्तर की गिरावट
राजधानी पटना में भूमिगत जल का दोहन इतनी तीव्र गति से हो रहा है कि कई इलाकों में जल स्तर 200 फीट से भी नीचे पहुंच गया है. गांधी मैदान क्षेत्र की स्थिति सबसे गंभीर है, जहां भू-जल स्तर 13.78 मीटर नीचे पाया गया है. सर्किट हाउस के पास यह 13.35 मीटर, ए.एन. कॉलेज के पास 11.73 मीटर, अनीसाबाद में 11.40 मीटर और पुनपुन में 8.95 मीटर नीचे चला गया है.
इन क्षेत्रों में पानी का अत्यधिक दोहन हो रहा है, लेकिन भूमिगत जल पुनर्भरण की व्यवस्था नहीं होने के कारण जल स्तर तेजी से गिरता जा रहा है.
राजधानी पटना के रहने वाली फ़ातमा बताती हैं कि "रोज़मर्रा की ज़िंदगी में पानी हमारे लिए काफ़ी महत्वपूर्ण है. लेकिन हमने बोरिंग हाल में ही कराया था. पहले बोरिंग करने में ज़्यादा नहीं होता था, तुरंत पानी आ जाता था लेकिन अब पानी आने के लिए कभी लंबा बोरिंग करना पड़ता है. जिससे ये बात साफ़ ज़ाहिर होता है पटना में भू-जल स्तर में गिरावट आई है."
बिहार के अन्य जिलों की स्थिति
पटना के अलावा, बिहार के कई अन्य जिलों में भी जल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है. मुजफ्फरपुर, नालंदा, नवादा, रोहतास, समस्तीपुर, वैशाली, शेखपुरा और वारिसनगर जैसे क्षेत्रों में भूमिगत जल की स्थिति बेहद चिंताजनक है.
जहानाबाद के रत्नीफरीदपुर और काको प्रखंड, नालंदा के नगरनौसा और पटना का शहरी क्षेत्र अत्यधिक जल दोहन वाले इलाके हैं. इन क्षेत्रों में जल की खपत अधिक है, लेकिन जल पुनर्भरण की कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई है.
पिछले दशक में जल स्तर में गिरावट
पिछले एक दशक में बिहार में भू-जल स्तर में भारी गिरावट दर्ज की गई है. पटना में पिछले 12 वर्षों में जल स्तर 196 फीट तक गिर गया है. वर्ष 2010 में जिन स्थानों पर 32-39 फीट की गहराई में पानी उपलब्ध था, वहीं 2023 में यह स्तर 229 फीट तक पहुंच चुका है. मुजफ्फरपुर में भू-जल स्तर में 90 फीट, जबकि भागलपुर में 70 फीट की गिरावट दर्ज की गई है.
रिपोर्ट के अनुसार, रिकाबगंज में 2010 में 39 फीट पर पानी उपलब्ध था, जो 2023 में 229 फीट तक नीचे चला गया. इसी तरह, खाजेकलां में 2010 में 45 फीट पर पानी मिलता था, लेकिन अब यह 196 फीट की गहराई में जा चुका है. हार्डिंग रोड पर 2010 में 45 फीट की गहराई पर पानी था, जबकि अब यह 229 फीट की गहराई में मिल रहा है.
आरा के वार्ड नंबर 33 के रहने वाले बमबम कुमार का परिवार भी पानी के लिए परेशान हैं. डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए बमबम बताते हैं "हर साल गर्मी में यही परेशानी हैं. गर्मी की शुरुआत में ही घर का बोरिंग फेल हो जाता है. हमारे पुराने घर में चापाकल लगा है जिसके सहारे हमलोग काम चलाते हैं. दिन भर में तीन से चार बार हमलोग वहां से पानी भरकर लाते हैं."
शहरीकरण और जल दोहन
शहरी क्षेत्रों में भू-जल का दोहन अत्यधिक हो रहा है. निजी बोरिंग के अलावा नगर निगम भी उच्च क्षमता वाले बोरिंग कराकर पानी की सप्लाई कर रहा है. शहर की आबादी बढ़ने के साथ ही पानी की खपत भी बढ़ रही है. पटना में हर दिन लगभग 1.10 करोड़ लीटर भूजल का दोहन किया जाता है.
शहर में 20 लाख लोगों को पानी की आपूर्ति के लिए 96 डिस्चार्ज ट्यूबवेल, 150 वाटर प्लांट और लगभग 30 हजार निजी पंप लगाए गए हैं. इस वजह से जल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है. केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार बिहर की 99.74% आबादी पेयजल के रूप में भूजल का उपयोग करती है जबकि मात्र 0.26% आबादी ही शोधित सतही जल का उपयोग पीने के लिए करते है.
एमपी सिन्हा बिहार के जाने-माने जल विशेषज्ञ हैं. डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए एमपी सिन्हा बताते हैं कि "बिहार में भू-जल संकट के पीछे कई कारण हैं. सबसे बड़ा कारण अनियंत्रित जल दोहन है, जिसमें शहरीकरण के कारण भू-जल का अत्यधिक उपयोग हो रहा है. जलाशयों की संख्या में कमी आई है, जिससे भू-जल पुनर्भरण नहीं हो पा रहा है. पेड़-पौधों की कटाई और कंक्रीट निर्माण की वजह से बारिश का पानी भूमि में समाने की क्षमता कम हो गई है. इसके अलावा, जल प्रबंधन की कमजोर नीतियां, सीवरेज और बारिश के पानी के लिए अलग व्यवस्था का न होना भी प्रमुख समस्याएं हैं."
भविष्य की जल आवश्यकता और उपलब्धता
बिहार में वर्ष 2050 तक जल की अनुमानित आवश्यकता 145048 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) आंकी गई है, जिसमें कृषि क्षेत्र के लिए 104706 एमसीएम और गैर-कृषि कार्यों के लिए 40342 एमसीएम जल की जरूरत होगी. लेकिन, वर्तमान में बिहार में केवल 132175 एमसीएम जल उपलब्ध है.
इसके अलावा, जलाशयों में संग्रहण क्षमता सिर्फ़ 949.77 एमसीएम रह गई है, जो बढ़ती मांग के मुकाबले काफ़ी कम है. बिहार सरकार ने जल प्रबंधन और भू-जल संरक्षण के लिए नहर, पंप और जलाशय सिंचाई योजनाओं पर काम करने की योजना बनाई है.
सरकार और प्रशासन ने इस संकट से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं. भूगर्भ जल अधिनियम 2019 के तहत, कोई भी व्यक्ति बीआईएस (BIS) प्रमाणन के बिना पैकेट बंद पेयजल और मिनरल वाटर की बिक्री नहीं कर सकता. इसके लिए एनओसी (No Objection Certificate) लेना अनिवार्य किया गया है, जो पांच वर्षों के लिए वैध होती है.
मिनरल वाटर प्लांट लगाने के लिए नगर निगम, नगर परिषद, पीएचईडी (PHED), पर्यावरण विभाग और खाद्य आपूर्ति विभाग से अनुमति लेना आवश्यक है. इसके बावजूद, भू-जल स्तर लगातार गिर रहा है, क्योंकि बड़े पैमाने पर अवैध बोरिंग और अनियंत्रित जल उपयोग जारी है.
2030 तक जल संकट की आशंका
महावीर कैंसर संस्थान और अनुसंधान केंद्र के शोध प्रमुख एवं बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अशोक घोष ने कहा कि आने वाले छह वर्षों में (2030 तक), बिहार गंभीर जल संकट का सामना कर सकता है. खासतौर पर, दक्षिण बिहार के जहानाबाद, गया, औरंगाबाद, जमुई, पटना और नवादा में यह समस्या विकराल रूप धारण कर सकती है.
गया के रहने वाले करण बताते हैं कि "मैं बोरिंग करने का काम करता हूं, पहले 60 से 80 फीट पर बोरिंग हो जाता था लेकिन अब 120 फीट तक गहरा बोरिंग करना पड़ता है. पहले भू-जल स्तर ठीक था पर अब भू-जल स्तर काफ़ी कम हो गया है. पहले कुआं में पानी होता परंतु अब कुआं का पानी भी कम होता जा रहा."
करण आगे बताते हैं कि "बिहार में भू-जल संकट तेज़ी से गहराता जा रहा है. अगर जल दोहन को नियंत्रित नहीं किया गया, तो आने वाले वर्षों में बिहार के कई शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की भारी किल्लत हो सकती है. जल संकट को रोकने के लिए सरकार को सख्त नीतियां लागू करनी होंगी और लोगों को भी जल संरक्षण के प्रति जागरूक बनाना होगा."
बिहार आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट (Bihar Economic Survey Report) 2023-24 के अनुसार मानसून से पहले कई जिलों में भूजल स्तर 25 फीट से नीचे दर्ज किया गया है. नवादा में 30 फीट, तो 11 जिलों (11 districts of Bihar) मुंगेर- शेखपुरा में 28 फीट, पटना, गया, जहानाबाद, औरंगाबाद, वैशाली, समस्तीपुर, लखीसराय, जमुई और भागलपुर में भूमि जल स्तर 26 फीट नीचे दर्ज किया गया है
समाधान क्या हो सकता है?
भू-जल संकट को रोकने के लिए जल संरक्षण की प्रभावी योजनाएं बनानी होंगी. वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) को अनिवार्य किया जाना चाहिए, ताकि बारिश के पानी को भूमि में संचित किया जा सके. जलाशयों, तालाबों और पोखरों का पुनरुद्धार किया जाना चाहिए.
जल दोहन को नियंत्रित करने के लिए सख्त नियम लागू करने होंगे और अवैध बोरिंग पर रोक लगानी होगी. इसके अलावा, पेड़-पौधों को बचाने और अधिक से अधिक वृक्षारोपण करने की आवश्यकता है, ताकि भू-जल पुनर्भरण की प्रक्रिया को तेज किया जा सके. जल प्रबंधन में सुधार के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग करना होगा, जिससे कृषि और घरेलू क्षेत्रों में जल की बर्बादी को रोका जा सके.