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ज़ाकिर कुरैशी की मां
बिहार में भीड़ के द्वारा हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है. ख़ास तौर से एक समुदाय के प्रति भीड़ की हिंसा के मामले बढ़ते जा रहे हैं. पिछले कुछ सालों में बिहार में 'मवेशी तस्करी या चोरी' के आरोप में कई मॉब लिंचिंग की घटनाएं सामने आयी हैं. बिहार के सारण जिले में साल 2019 में तीन लोगों की हत्या मवेशी तस्करी के आरोप में कर दी गयी थी. ये घटना सारण के नन्दलाल टोला में हुई थी. साल 2023 में भी सारण के ट्रक ड्राइवर मोहम्मद ज़हीरुद्दीन की हत्या भी भीड़ ने गौमांस के शक में की थी.
बिहार के सारण जिले से एक बार फिर भीड़तंत्र की भयावह और शर्मनाक घटना सामने आई है. इंसाफ़ और कानून को ताक पर रख कर भीड़ ने 24 वर्षीय ज़ाकिर कुरैशी की पीट-पीटकर हत्या कर दी. वहीं उनके छोटे भाई नेहाल कुरैशी गंभीर रूप से घायल हैं और पटना के पीएमसीएच में जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं.
क्या है पूरी घटना?
PMCH में भर्ती नेहाल कुरैशी से जब हमने बात की, तो उनकी आंखों में दर्द और डर साफ झलक रहा था. कांपती हुई आवाज़ में उन्होंने बताया कि यह भयावह घटना 11 मई की शाम लगभग 4 बजे की है. ज़ाकिर कुरैशी रोज़ की तरह अपने घर से जिम के लिए निकले थे. लेकिन छोटा तेलपा के पास अचानक करीब 30 से 35 लोगों की उग्र भीड़ ने उन्हें घेर लिया और लाठी-डंडों से हमला कर दिया.भीड़ में मौजूद कई लोगों ने चाकू से भी वार किए.
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जब नेहाल को अपने भाई पर हो रहे हमले की खबर मिली, तो वो उन्हें बचाने दौड़े. लेकिन तब तक भीड़ ने नेहाल पर भी हमला कर दिया और बेरहमी से पीटा.लोगों की भीड़ को आते देख हमलावर भाग खड़े हुए. खून से लथपथ दोनों भाइयों को किसी तरह सदर अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डॉक्टरों ने जाकिर को मृत घोषित कर दिया. नेहाल की हालत गंभीर होने के कारण उन्हें तुरंत पटना रेफर कर दिया गया. नेहाल के पूरे शरीर पर गहरे जख्म हैं. उनकी दाहिनी किडनी और हाथ बुरी तरह ज़ख्मी हैं.
दर्द से कराहते हुए नेहाल कहते हैं, "मैं अब सारण लौटकर नहीं जाना चाहता. मुझे अपनी जान का खतरा है."
क्या कहती है पुलिस?
पुलिस ने नेहाल कुरैशी के बयान के आधार पर मामले की जांच शुरू की है. एक विशेष टीम का गठन किया गया है और प्राप्त सूचनाओं के आधार पर छापेमारी की गई, जिसमें अब तक चार नामजद अभियुक्तों—पंकज कुमार, मिंटू राय, सागर कुमार और सनी कुमार—को गिरफ्तार किया जा चुका है. वहीं, दो अभियुक्तों की गिरफ्तारी नहीं होने पर पुलिस ने उनके घरों पर पोस्टर चिपकाया है कि वे दो दिनों के अंदर हाज़िर हों, अन्यथा उनके घर की कुर्की-ज़ब्ती की जाएगी.
इस मामले को लेकर 12 मई को सारण पुलिस की ओर से ट्विटर पर एक वीडियो साझा किया गया. इसमें सारण के वरीय पुलिस अधीक्षक डॉ. कुमार आशीष ने बताया कि घटना का प्रारंभिक कारण 'जानवर चोरी' बताया गया है. साथ ही, यह भी जांच की जा रही है कि कहीं कोई पुराना विवाद तो नहीं था.
“जानवर चोरी की कोई बात नहीं है”
इस मामले पर बात करते हुए नेहाल कुरैशी के बहनोई जियाउल कुरैशी ने हमें बताया, “मुझे बताइए कि साढ़े 4 बजे शाम में कोई जानवर चोरी करने जाता है? यह सीधा-सीधा धार्मिक आधार पर की गई हिंसा है. ज़ाकिर रोज़ की तरह घर से जिम के लिए निकले थे. छोटा तेलपा के पास उस समय कुछ लोग शराब और गांजे के नशे में थे और उन्होंने सिर्फ इस आधार पर मारपीट की कि यह मुसलमान है और मांस खाकर बॉडी बना रहा है और हम लोगों को दिखा रहा है. इसके बाद वहां के लोगों ने उसे जातीय और धार्मिक गालियां देना शुरू कर दीं और बाद में ज़ाकिर कुरैशी को जबरदस्ती एक घर के अंदर ले जाकर पीटना शुरू कर दिया. उसके बाद क्या हुआ, आप सबको पता ही है.”
जियाउल ने हमसे बात करते हुए कहा की “ज़ाकिर एक सीधा-सादा लड़का था. वह मांस की दुकान में लेबर का काम करता था और दिन का 150 से 200 रुपये कमाता था. उसके साथ यह मारपीट सिर्फ इसलिए हुई क्योंकि वह मुसलमान था.”
क्यों होती हैं ऐसी घटनाएं?
जब बिहार में मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ने लगीं, तो 13 सितंबर 2018 को सरकार ने एक फैसला लिया कि मॉब लिंचिंग के मामलों में पीड़ित परिवार को तीन लाख रुपये मुआवजा दिया जाएगा और इन मामलों की सुनवाई के लिए विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित किए जाएंगे, जिनमें छह महीने के भीतर सुनवाई पूरी की जाएगी. लेकिन इसका कोई खास लाभ नहीं हुआ.
इस मामले पर पूर्व IPS अधिकारी अमिताभ कुमार दास से हमने बात की. उन्होंने बताया, “बिहार में सिर्फ मॉब लिंचिंग ही नहीं, पूरी व्यवस्था माफिया और भ्रष्टाचार के चंगुल में है. मॉब लिंचिंग की घटनाओं में अक्सर FIR ‘अज्ञात’ लोगों के खिलाफ होती है, जिससे असली दोषी बच निकलते हैं. पुलिस भ्रष्ट है और पहचान करने या कार्रवाई करने में नाकाम रहती है. गवाहों को या तो धमकाया जाता है या खरीद लिया जाता है, जिससे वे कोर्ट में बयान बदल देते हैं.”
उन्होंने हमसे बात करते हुआ कहा की “2014 के बाद देश में धार्मिक ध्रुवीकरण और ‘एंटी-मुस्लिम’ माहौल बना है. इससे लिंचिंग जैसी घटनाओं को राजनीतिक संरक्षण भी मिलता है. न्याय में देरी या इनकार होने से अपराधियों का हौसला और बढ़ता है, क्योंकि उन्हें पता होता है कि उन्हें सज़ा नहीं मिलेगी. ऐसे में और लोगों के हौसले भी बुलंद होते हैं इस तरह की हरकतें करने के लिए.”