बिहार में पिछले दिनों मानसून के कारण एक के बाद एक कई पुलों ने आत्महत्या कर ली. इन पुलों की आत्महत्या की खबर ने बिहार को एक अलग नकारात्मक पहचान दी. राज्य में पुलों के गिरने का एक रिकॉर्ड बना, जिसका मुकाबला किसी राज्य तो क्या किसी देश में भी नहीं बन सकता है. बिहार में दर्जनों पुल गिरने के बाद राज्य सरकार जाग गई और इनके रखरखाव के लिए एक नीति लागू की गई.
राज्य में पुल गिरने के बाद अब सरकारी स्कूलों ने भी इसकी देखा देखी शुरू कर दी है. मानसून में राज्य के अलग-अलग जिलों से स्कूल के छत गिरने की खबरें भी आ रही है, यानी जहां से बच्चे पढ़- लिख कर आगे चलकर इंजीनियर बनेंगे और पुलों का निर्माण करेंगे, वह अभी से ही यह सीख रहे हैं कि किस तरीके से निर्माण भरभरा सकता है. बीते दिन बिहार के मुंगेर जिले में एक स्कूल के जर्जर भवन की छत पूरी तरह से ध्वस्त हो गई. हालांकि इस घटना में किसी भी बच्चे को कोई नुकसान नहीं पहुंचा. मगर मुंगेर की इस घटना ने बिहार में स्कूल की छत गिरने की शुरुआत कर दी. मुंगेर के बाद राजधानी पटना में स्कूल के छत का प्लास्टर गिर गया, जिसमें चार बच्चे घायल भी हो गए. पटना में जहां शिक्षा मंत्री मौजूद है, शिक्षा विभाग का कार्यालय मौजूद है, विभाग में पदास्थापित अपर मुख्य सचिव का निरीक्षण भी यहां चलता रहता है, वहां इतनी बड़ी घटना होना कोई मामूली बात नहीं है.
कुछ दिनों पहले ही शिक्षा विभाग की ओर से राज्य के सभी स्कूलों के लिए पत्र जारी कर कहा गया था कि स्कूलों के मरम्मती, रंगन-रोगन का काम कराया जाए. विभाग का यह लेटर अभी एक हफ्ते पहले ही जारी हुआ. इसके पहले शिक्षा विभाग की ओर से जर्जर भवन की मर्मती के लिए कोई आदेश जारी हुआ या नहीं यह भी देखने वाली बात है और अगर विभागीय आदेश जारी भी होता है तो क्या इसे लागू कराया जाता है? जी नहीं, अगर यह आदेश जमीनी स्तर पर लागू होता तो ऐसी घटना बिहार में घटती ही नहीं.
राज्य में सरकारी स्कूलों के पढ़ाई, मिड डे मील की गुणवत्ता, स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता, परिसर में बच्चों की सुरक्षा इत्यादि पर सवाल खड़े होते ही रहते हैं. अधिकतर लोग सरकारी स्कूलों की बजाय प्राइवेट स्कूलों पर भरोसा ज्यादा जताते हैं, जिसके पीछे यह भी एक मुख्य कारण है कि सरकारी स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता है. राज्य के लगभग हर जिले में आपको ऐसे स्कूल नजर आ जाएंगे जहां जर्जर भवन में ही बच्चों की पढ़ाई कराई जा रही है. ऐसे भवनों में बच्चों के जिंदगी पर भी हमेशा खतरा बना रहता है. अमूमन अब के दिनों में सरकारी स्कूलों में वैसे अभिभावक ही अपने बच्चों का दाखिला कराते हैं, जो आर्थिक रूप से मजबूत नहीं होते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि जो आर्थिक रूप से कमजोर लोग हैं क्या उनके लिए स्कूलों में अच्छी व्यवस्था, अच्छा खान-पान और अच्छी पढ़ाई जैसी सुविधा नहीं होनी चाहिए? क्या उनके बच्चों के जिंदगी की अहमियत सरकार के सामने कुछ नहीं है?
बिहार के शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव मौजूदा समय में एस सिद्धार्थ है, जो आए दिन पटना की सड़कों से लेकर अलग-अलग जिलों में अपने भ्रमण के कारण सुर्खियां बटोरते हैं. इसके पहले भी अपर मुख्य सचिव के के पाठक ने अपने जमिनी निरीक्षण के लिए वाहवाहीयां बटोरी थी. मगर शिक्षा विभाग के इन कदमों से भी स्कूलों में बड़े स्तर पर चूक देखी जा रही है.
राज्य के जिन दो स्कूलों के भवनों के छत गिरने की घटना हुई है, वह दोनों भवन पहले ही जर्जर घोषित हो चुके थे. इन दोनों स्कूलों की ओर से संबंधित पदाधिकारीयों को भवन के दुर्दशा की जानकारी दी गई थी. मगर विभागीय लापरवाही और अनदेखी के कारण बिहार में शिक्षा व्यवस्था पर एकबार फिर बड़ा सवाल आज भी खड़ा है.