पिछले महीने ही केंद्र सरकार ने अनुपूरक बजट की घोषणा की, जिसके ऐलान के बाद देशभर में बिहार को मिले स्पेशल पैकेज की चर्चा होने लगी. बिहार को केंद्र की ओर से 58 हजार करोड़ रुपए के योजनाओं की सौगात मिली. जिसके तहत राज्य में तीन नए एक्सप्रेस वे, पावर प्लांट, एयरपोर्ट, मेडिकल कॉलेज, कॉरिडोर इत्यादि निर्माण की योजना बनाई गई है. मोदी सरकार के इस मेहरबानी से जदयू गदगद हो गया. वैसे तो नीतीश कुमार ने विशेष राज्य के दर्जे का अलाप भाजपा में शामिल होते ही बंद कर दिया था, मगर अब पूरी तरह से विशेष पैकेज का झुनझुना जदयू बजाने लगी है.
इतने बड़े पैकेज में 26 हजार करोड़ रुपए तो सिर्फ एक्सप्रेसवे के निर्माण पर ही खर्च होंगे.
मगर सीएम नीतीश इतने बड़े पैकेज से अब भी संतुष्ट नहीं है. इसलिए उन्होंने बिहार के विकास पर पानी की तरह पैसा बहाने की योजना बनाई है. सीएम ने 48 हजार करोड़ रुपए का कर्ज अलग से लेने की तैयारी की है. इस रकम को सीएम कुमार अलग-अलग वित्तीय संस्थानों से जुटाएंगे और इससे बिहार में आर्थिक विकास को गति और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के क्षेत्र में काम करेंगे.
लेकिन इस बड़ी रकम को चुकाने के लिए बिहार की जनता को ही मेहनत करनी होगी. जी हां सरकार जितनी बड़ी रकम कर्ज लेगी, उसे चुकाने के लिए जनता को उतना ही टैक्स भरना पड़ेगा. यूं तो सीएम खुद भी बिहार के स्थिति को जानते- समझते हुए विशेष राज्य के दर्जे की मांग करते हैं, मगर दूसरी ओर इतने बड़े कर्ज के तले राज्य को दबा रहें हैं.
बिहार में हजारों विकास परियोजनाएं पहले से चली आ रही हैं. कई विकास परियोजनाओं को राज्य ने बनते के साथ गिरते देखा है. यह बात कोई नई नहीं है कि राज्य में 5 हजार करोड़ रुपए की लागत से बना पुल 5 दिन के अंदर ही गिर जाता है. करोड़ो रुपए की लागत से शुरू हुई परियोजनाओं को ठप होने में मिनटों का भी समय नहीं लगता. सीएम ने बिहार में ही रोजगार का सपना तो अच्छा बनाया है, मगर टिकाऊ रोजगार की कोई योजना भी नीतीश सरकार को बनानी चाहिए.
बिहार में रिसोर्सेज को बर्बाद करने का भी एक अच्छा ट्रेंड देखा गया है. यहां पुल गिरने, पुलों का कहीं भी निर्माण कराने, पेपर लीक होने और वापस उन परीक्षाओं का आयोजन करने, इन सब की जांच के लिए कमेटी बनाने इत्यादि पर खूब पैसे खर्च किए जाते हैं. लेकिन सवाल उठता है कि जो कर्ज लिए गए पैसे हैं वह, और जो स्पेशल पैकेज सरकार की ओर से मिले वह भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाए!
हालांकि यह पहला मौका नहीं था जब केंद्र की मोदी सरकार नीतीश कुमार पर इस तरह मेहरबान हुई. इसके पहले भी 2015 में केंद्र की ओर से बिहार को करोड़ों रुपए की सौगात मिली थी. उस समय भी विधानसभा चुनाव सर पर थे. पीएम मोदी ने राज्य को 1.25 लाख करोड़ रुपए का पैकेज दिया था. इस आर्थिक पैकेज पर भी विपक्ष ने कई सवाल उठाए थे. आर्थिक मेगा पैकेज से मिली राशि का बिहार में कितना इस्तेमाल हुआ था इसका ब्योरा कांग्रेस महासचिव ने दिया था. 2020 में रणदीप सुरजेवाला ने दावा किया था कि पीएम मोदी की ओर से बिहार को मिली विशेष राशि में से केवल 1599 करोड़ रुपए का हीं काम 5 साल में हुआ है.
2025 में विधानसभा चुनाव है ऐसे में क्या इन करोड़ों रुपए के बजट, कर्ज, परियोजनाओं, नौकरियों की झड़ी सिर्फ वोट बटोरने के नजरिए से चलाई जा रही है?