गंगा घाट की दुर्दशा: 200 करोड़ खर्च करके भी सौंदर्यीकरण का अभाव

पटना के कलेक्ट्रेट घाट से लेकर एनआईटी घाट तक लगभग 6 किलोमीटर के क्षेत्र में लोहे की रेलिंग, टाइल्स, और मार्बल गायब हो चुके हैं. चोरों द्वारा लोहे की रेलिंग काटकर ले जाने की घटनाएं आम हो गई हैं.

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नाजिश महताब
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2016 में करीब 200 करोड़ रुपये की लागत से गंगा के घाटों का निर्माण और सौंदर्यीकरण किया गया. इसके अतिरिक्त, घाटों की रौशनी को और आकर्षक बनाने के लिए 14 करोड़ रुपये का खर्च किया गया. यह प्रोजेक्ट न केवल स्थानीय निवासियों के लिए बल्कि पर्यटकों के लिए भी एक महत्वपूर्ण आकर्षण बनने की उम्मीद थी.

हालांकि, निर्माण के मात्र आठ वर्षों के भीतर, इन घाटों की स्थिति अत्यधिक खराब हो चुकी है. यह न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि जनता के लिए उपलब्ध कराई गई सुविधाओं के संरक्षण की विफलता का भी प्रतीक है.  

गंगा घाटों की वर्तमान स्थिति

पटना के कलेक्ट्रेट घाट से लेकर एनआईटी घाट तक लगभग 6 किलोमीटर के क्षेत्र में लोहे की रेलिंग, टाइल्स, और मार्बल गायब हो चुके हैं. चोरों द्वारा लोहे की रेलिंग काटकर ले जाने की घटनाएं आम हो गई हैं. इस चोरी के स्थान पर अब ईंट की दीवारें खड़ी कर दी गई हैं. घाटों का सौंदर्यीकरण, जो कभी इनकी पहचान था, अब एक धूमिल तस्वीर पेश कर रहा है.  

रोशनी की व्यवस्था भी पूरी तरह से चरमरा चुकी है. अधिकांश घाटों पर लाइटिंग सिस्टम बंद हो चुका है, जिससे चौतरफा अंधकार व्याप्त हो गया है. इस अंधेरे के कारण न केवल लोग इन घाटों पर जाने से बचने लगे हैं, बल्कि ये स्थान अब असामाजिक गतिविधियों और नशाखोरी के अड्डे बन चुके हैं.  

प्रशासन की विफलता और देखरेख की कमी

शुरुआत में, घाटों की सुरक्षा और देखरेख के लिए 30 से अधिक गार्डों की तैनाती की गई थी. लेकिन वर्तमान में, इन घाटों पर कोई सुरक्षा गार्ड मौजूद नहीं है. पुलिस की गश्ती भी पूरी तरह से गायब है. स्थानीय निवासियों का कहना है कि अड्डेबाजी और असुरक्षा की स्थिति के कारण घाटों पर शाम को जाना जोखिमभरा हो गया है.  

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सुबह के वक्त योगा करने आए अमन से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया कि "मैं हमेशा यहां योगा और व्यायाम करने आता हूं. इसी दौरान अगर मुझे कभी शौच लगता है तो मुझे वापस घर जाना पड़ता है. घाटों पर बना हुआ शौचालय या तो बंद रहता है या अगर गलती से खुला मिल गया तो इतनी गंदगी रहती है की आप शौच तक नहीं कर पाओगे. इसका सीधा असर हमारे सेहत पर होता है. मैं यहां सेहत बनाने आता हूं तो कहीं उल्टा न हो जाए एक तो यहां का कैंटीन भी हमेशा बंद ही रहता है."

शौचालयों की यह स्थिति, जो स्वास्थ्य और स्वच्छता का महत्वपूर्ण हिस्सा है, प्रशासनिक उदासीनता को दर्शाती है. गार्ड रूम, चेंजिंग रूम, और कैंटीन जैसी बुनियादी सुविधाएं भी या तो बंद हैं या अत्यधिक खराब स्थिति में हैं.  

महिला सुरक्षा और सुविधाओं की कमी  

महिलाओं के लिए इन घाटों पर स्थिति और भी अधिक चिंताजनक है. शाम को टहलने गई सुप्रिया से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया कि "यहां पर सिर्फ़ अड्डाबाज़ी होती है. हम पर यहां खुद को सुरक्षित नहीं समझते हैं. कई बार झुंड में लड़के आकर कमेंट करते हैं. यहां पर नशा आम बात हो गया है. कहीं पर भी प्रशासन नहीं दिखता है. सरकार ने इतने पैसे खर्च किए हैं लेकिन यहां लड़कियां ही सुरक्षित नहीं है तो राज्य का विकास कैसे होगा."

महिला सुरक्षा के अभाव के साथ-साथ, महिलाओं के लिए शौचालय और चेंजिंग रूम जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. न केवल इन सुविधाओं की कमी है, बल्कि जहां मौजूद हैं, वे खराब रखरखाव के कारण अनुपयोगी हैं.  

दिव्यांगजनों के लिए शौचालयों और अन्य सुविधाओं की स्थिति और भी दयनीय है. वैष्णवी का अनुभव बताता है कि "घाट पर या स्टेशन स्टेशन या सार्वजनिक स्थलों पर बने शौचालय अक्सर ताले में बंद होते हैं,और अगर इमरजेंसी हो तो काफ़ी समस्या होती है. दिव्यांगजनों के लिए सुविधाओं की कमी न केवल उनके जीवन को कठिन बनाती है, बल्कि समाज की संवेदनशीलता पर सवाल खड़े करती है."

रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट और प्रशासनिक लापरवाही  

बुडको के रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट के तहत 12 यूनिट शौचालय बनाए गए और इन्हें नगर निगम को सौंपा गया. हालांकि, नगर निगम ने इनका रखरखाव सुनिश्चित नहीं किया, जिससे ये शौचालय अब अनुपयोगी हो चुके हैं. 2022 में 900 मॉड्यूलर शौचालयों के लिए निविदा जारी की गई थी, लेकिन 2019 और 2020-21 में बनाए गए शौचालयों के खराब रखरखाव के कारण यह प्रोजेक्ट रोक दिया गया.  

नगर निगम के पास शौचालयों की सटीक जानकारी या डेटा मौजूद नहीं है. पीआरओ ने कहा है कि वो इन समस्याओं को जल्द ही संबंधित अधिकारियों के ध्यान में लाएंगे, लेकिन ऐसा कोई ठोस कदम अब तक नहीं उठाया गया है.  

अवैध कब्जा और प्रशासनिक उदासीनता

गंगा घाटों पर बढ़ते अवैध कब्जे ने समस्या को और गंभीर बना दिया है. यह घाट, जो कभी स्थानीय समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान थे, अब असामाजिक तत्वों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बन चुके हैं. नगर निगम, जिला प्रशासन, और पुलिस विभाग की निष्क्रियता ने इन समस्याओं को और बढ़ावा दिया है.  

घाटों पर सुरक्षा गार्डों की तैनाती और नियमित पुलिस गश्ती अनिवार्य की जानी चाहिए. इससे असामाजिक गतिविधियों पर रोक लगाई जा सकेगी. शौचालय, लाइटिंग, और अन्य बुनियादी सुविधाओं के नियमित रखरखाव के लिए ठोस योजना बनाई जानी चाहिए. नगर निगम को शौचालयों की साफ-सफाई और संचालन के लिए एक स्थायी टीम नियुक्त करनी चाहिए.  

महिलाओं और दिव्यांगजनों के लिए विशेष सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए. नगर निगम और संबंधित विभागों को घाटों की वर्तमान स्थिति पर रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए और समयबद्ध सुधार की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए.