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भारत के विकास के नक्शे पर बिहार की अपनी अलग पहचान है. समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के बावजूद, इस राज्य में जल संकट और स्वच्छता के मुद्दे वर्षों से गहरी चिंता का विषय बने हुए हैं.
राज्य की लगभग आधी आबादी अभी भी साफ़ पानी और स्वच्छता की मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. सरकारी आंकड़े और योजना दस्तावेज़ जहां कुछ प्रगति का संकेत देते हैं, वहीं ज़मीन पर हालात अभी भी चुनौतीपूर्ण हैं.
बिहार में जल संकट की स्थिति: सरकारी आंकड़े और उनका विश्लेषण
केंद्रीय जल आयोग की 2023 की रिपोर्ट बताती है कि बिहार में प्रति व्यक्ति जल संसाधन राष्ट्रीय औसत की तुलना में लगभग 35% कम उपलब्ध हैं. बिहार के 38,000 से अधिक गांवों में 42% के लगभग ग्रामीण परिवारों को अभी भी घरेलू नल जल की सुविधा पूरी तरह नहीं मिल पाई है. यह आंकड़ा स्वयं बताता है कि पानी की कमी की समस्या कितनी गंभीर है.
राष्ट्रीय स्वच्छता सर्वेक्षण (NSS) 2023 के आंकड़ों से पता चलता है कि बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में पीने के पानी की गुणवत्ता बेहद खराब है. लगभग 25% ग्रामीण परिवारों के नलों से प्राप्त पानी में आर्सेनिक और फ्लोराइड की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की सुरक्षित सीमा से कई गुना अधिक पाई गई है. यह जल प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है.
भागलपुर, मधेपुरा, सहरसा, वैशाली और सासाराम जैसे पूर्वी और पश्चिमी जिलों में जल प्रदूषण की समस्या विशेष रूप से गंभीर है. सहरसा जिले के एक ग्रामीण स्वास्थ्य अधिकारी, डॉ. रवि चौधरी के अनुसार, “हमारे इलाके में आर्सेनिक का स्तर 0.05 मिलीग्राम प्रति लीटर से ऊपर है, जबकि WHO की सीमा 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर है. इस कारण से स्किन कैंसर, श्वास रोग और अन्य बीमारियां आम हो गई हैं.”
बिहार के चुनिंदा जिलों में भूजल गिरावट: बढ़ता जल संकट
राज्य के कई जिलों में हाल के वर्षों में भूजल स्तर में उल्लेखनीय कमी आई है, जिससे कृषि, पेयजल और स्थानीय लोगों पर गहरा असर पड़ा है. ख़ासकर उन जिलों में जहां यह गिरावट सबसे ज्यादा हुई है, स्थिति चिंताजनक है.
सुपौल: भूजल गिरावट का सबसे बड़ा केंद्र
सुपौल जिला बिहार के पूर्वी हिस्से में स्थित है, जहां पिछले एक वर्ष में भूजल स्तर में लगभग 1.54 मीटर की गिरावट दर्ज की गई है. यह गिरावट इस क्षेत्र के किसानों और ग्रामीण आबादी के लिए बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है. सुपौल में अधिकांश किसान सिंचाई के लिए भूमिगत जल पर निर्भर हैं, लेकिन पानी की कमी के कारण कुओं की संख्या कम हो रही है. किसान रमेश ठाकुर कहते हैं, “पहले कुआं लगभग 15 मीटर गहरा था, अब हमें 25-30 मीटर गहरा कुआं खोदना पड़ता है, जो महंगा और मुश्किल है.”
सुपौल में जल संरक्षण की योजनाएं लागू की जा रही हैं, लेकिन उनकी प्रभावशीलता सीमित है. स्थानीय जलस्रोत सूखते जा रहे हैं, और गांवों में पीने के पानी के लिए लोगों को दूर जाना पड़ता है. जल संकट ने यहां के जीवन को कठिन बना दिया है.
गोपालगंज: सिंचाई और पेयजल दोनों प्रभावित
गोपालगंज जिले में भी भूजल स्तर में 1.25 मीटर की गिरावट देखी गई है. यह जिला पश्चिमी बिहार में आता है, जहां कृषि उत्पादन की तीव्रता अधिक है. गोपालगंज के किसान सिंचाई के लिए गहरे कुओं पर निर्भर हैं, लेकिन अब उन्हें अधिक गहरे कुएं खोदने पड़ रहे हैं, जिससे उनकी लागत बढ़ रही है.
स्थानीय स्तर पर जल संरक्षण की जागरूकता बढ़ाने के प्रयास तो हो रहे हैं, लेकिन व्यापक पैमाने पर तकनीकी और वित्तीय सहायता की कमी बनी हुई है. जिले के कई गांवों में पानी की उपलब्धता संकटग्रस्त हो गई है, खासकर गर्मी के मौसम में.
पूर्वी चंपारण: भूजल गिरावट का निरंतर खतरा
पूर्वी चंपारण जिले में भूजल स्तर में लगभग 0.60 मीटर की गिरावट आई है. यह जिला पारंपरिक रूप से खेती पर निर्भर रहा है, लेकिन जल संकट ने यहां के किसानों की चिंताएं बढ़ा दी हैं. वर्षा पर निर्भर खेती के कारण जब सूखा पड़ता है, तो भूमिगत जल की मांग बढ़ जाती है, जिससे भूजल तेजी से घटता है.
यहां के ग्रामीण बताते हैं कि नल-जल योजना के बावजूद, कई गांवों में पानी पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच पाता. जल की कमी के कारण स्वास्थ्य और स्वच्छता की समस्याएं भी बढ़ रही हैं.
जल संकट का सामाजिक प्रभाव
दरभंगा के कुसुमपुर गांव की 45 वर्षीय रामधारी झा कहती हैं, “नल तो आता है, पर दिन में आधा घंटे से ज्यादा पानी नहीं आता. कई बार पानी गंदा होता है. हम लोग मजबूर होकर कुएं या तालाब का पानी पीते हैं, जो सही नहीं होता.”
सहरसा के पुरनिया गांव की महिला कामधेनु कुमारी बताती हैं, “हमारे बच्चों को दांत खराब होना और त्वचा पर चकत्ते लगना आम बात हो गई है. डॉक्टर ने कहा कि पानी में जहरीले पदार्थ हैं.”
ऐसे स्थानीय अनुभव साफ़ करते हैं कि जल संकट केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि हज़ारों परिवारों की रोज़मर्रा की समस्या है.
जल का सीधा असर स्वच्छता पर
बिहार सरकार ने ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के तहत 2014 से लेकर अब तक 25 लाख से अधिक शौचालय बनवाए हैं. हालांकि, बिहार ग्रामीण विकास प्राधिकरण (BRDA) की 2023 की समीक्षा रिपोर्ट के मुताबिक, इन शौचालयों में से लगभग 30% में पानी की सुविधा नहीं है, जिससे उनका सही उपयोग नहीं हो पाता.
राज्य के शिक्षा विभाग के आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण स्कूलों के 40% शौचालयों में पानी की कमी के कारण छात्राओं का स्कूल छोड़ना बढ़ रहा है. किशनगंज के रामपुर प्रखंड की शिक्षिका सीमा देवी का कहना है, “हमारे स्कूल में शौचालय तो हैं, लेकिन पानी नहीं होने से लड़कियां असहज महसूस करती हैं और कई बार स्कूल जाना छोड़ देती हैं.”
खुले में शौच की प्रथा अभी भी बिहार के ग्रामीण इलाकों में व्यापक है. एनएसएसओ की रिपोर्ट (2023) के अनुसार, बिहार में लगभग 38% ग्रामीण परिवार खुले में शौच करते हैं, जो स्वास्थ्य, महिला सुरक्षा और सामाजिक सम्मान के लिए बड़ा खतरा है.
जल संरक्षण की पहल और चुनौतियां
मनरेगा योजना के तहत बिहार में 2019-23 के बीच लगभग 7,000 तालाबों का जीर्णोद्धार किया गया. हालांकि, जल संसाधन विभाग की रिपोर्ट 2023 के मुताबिक, इनमें से लगभग 50% तालाबों का उचित रखरखाव नहीं हो पा रहा है.
भागलपुर जिले के ग्राम पंचायत सचिव विकास राय कहते हैं, “तालाब में पानी जमा रहता है, लेकिन कूड़ा-करकट और प्रदूषण के कारण उनका उपयोग सीमित हो गया है. सरकार से फंड और संसाधन नहीं मिलने के कारण हम उन्हें ठीक से साफ नहीं कर पाते.”
जल संरक्षण के अभाव में बिहार की कृषि और जल जीवन दोनों प्रभावित हो रहे हैं, जो भविष्य में खाद्य सुरक्षा के लिए भी खतरा है.
जलजनित बीमारियों का असर
बिहार स्वास्थ्य विभाग की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, डायरिया, टाइफाइड, हैजा, और स्किन डिजीज जैसी जलजनित बीमारियों के कारण राज्य में प्रतिवर्ष लगभग 1,50,000 लोग प्रभावित होते हैं. इन बीमारियों से होने वाली मौतें भी करीब 1,200 प्रति वर्ष दर्ज हुई हैं.
पटना के सरकारी अस्पताल में काम करने वाले डॉ. अभिषेक शर्मा बताते हैं, “बारिश के मौसम में इन बीमारियों के मरीज़ दोगुने हो जाते हैं. खासतौर पर बच्चे और बुजुर्ग अधिक प्रभावित होते हैं.”
महिला सुरक्षा और स्वच्छता की चुनौती
बिहार महिला आयोग की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण महिलाओं का 62% हिस्सा रात के समय खुले में शौच जाना असुरक्षित मानता है. इससे न केवल महिलाओं की सुरक्षा खतरे में पड़ती है, बल्कि वे सामाजिक और शैक्षिक गतिविधियों से भी वंचित रह जाती हैं.
सुपौल जिले की महिला रेखा कुमारी कहती हैं, “रात को बाहर जाना डरावना होता है. हमलोग कोशिश करते हैं कि घर पर ही काम निपटा लें, लेकिन यह पूरी तरह संभव नहीं होता.”
सुधार के लिए सुझाए गए कदम
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जल स्रोतों की नियमित गुणवत्ता जांच: हर जल स्रोत की वार्षिक दो बार जांच कराई जाए और प्रदूषित जल स्रोतों का शीघ्र उपचार किया जाए.
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तालाबों और जलाशयों का दीर्घकालिक संरक्षण: पंचायतों को वित्तीय संसाधन और अधिकार प्रदान किए जाएं ताकि वे जल संरक्षण का बेहतर रखरखाव कर सकें.
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स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में पानी और स्वच्छता की नियमित उपलब्धता: जिससे बच्चों की सेहत बनी रहे और शिक्षा प्रभावित न हो.
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खुले में शौच के खिलाफ व्यापक सामाजिक जागरूकता अभियान: महिला समूहों, स्थानीय संस्थाओं और मीडिया के सहयोग से.
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सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही: डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाभार्थियों की निगरानी और भ्रष्टाचार रोकने के लिए कड़े कदम.
क्या ये कहानी आंकड़ों की है?
बिहार में जल संकट और स्वच्छता की समस्या केवल आंकड़ों की कहानी नहीं है, बल्कि यह हजारों परिवारों की जिंदगियों का हिस्सा है. सरकारी प्रयासों के बावजूद जमीन पर बहुत सी समस्याएं बनी हुई हैं क्योंकि नीतियां सही ढंग से लागू नहीं हो पा रही हैं.
इस समस्या से निपटने के लिए सरकार, नागरिक समाज, और स्थानीय समुदायों को मिलकर काम करना होगा. तभी बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में साफ पानी, बेहतर स्वच्छता और स्वस्थ जीवन की गंगा बह सकेगी.