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"हमने कोर्स तो कर लिया, सर्टिफिकेट भी मिल गया, लेकिन अब क्या करें?" — यह सवाल पटना के फुलवारी शरीफ़ के 22 वर्षीय खुर्शीद आलम का है, जिसने 2021 में स्किल इंडिया के तहत इलेक्ट्रिशियन का कोर्स पूरा किया था. लेकिन आज, तीन साल बाद, वह फिर से वही पुरानी मज़दूरी कर रहा है.
बिहार में हज़ारों युवा हर साल स्किल डेवलपमेंट कोर्स करते हैं, लेकिन उनमें से बहुसंख्यक को न तो नौकरी मिलती है, न स्वरोजगार शुरू करने में कोई मदद.
प्रशिक्षण केंद्र: संख्या बहुत, गुणवत्ता कम
बिहार स्टेट स्किल डेवलपमेंट मिशन (BSSDM) की वेबसाइट के अनुसार 2024 की पहली तिमाही तक राज्य में 816 अधिकृत प्रशिक्षण केंद्र संचालित हो रहे थे. इनमें से ज़्यादातर केंद्र निजी संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे हैं.
Democratic Charkha की टीम ने अप्रैल 2024 में पटना, समस्तीपुर, गया और पूर्णिया ज़िलों में कुल 20 केंद्रों का निरीक्षण किया, जहाँ पाया गया:
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40% केंद्रों में प्रशिक्षक मान्यता प्राप्त नहीं थे.
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35% केंद्रों में सिलेबस आउटडेटेड था.
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50% छात्रों को प्लेसमेंट संबंधी कोई जानकारी नहीं दी गई.
गया के फैज़ आलम, जिन्होंने मोबाइल रिपेयरिंग का कोर्स किया था, बताते हैं: "सीखा तो बहुत कुछ, लेकिन प्रैक्टिकल मशीनें ही नहीं थीं. सब थ्योरी था."
‘तीन कोर्स किए, फिर भी मज़दूरी ही करनी पड़ी’ — औरंगाबाद के रोशन की कहानी
औरंगाबाद जिले के देव प्रखंड के एक छोटे से गांव लोहियानगर के 24 वर्षीय रोशन कुमार ने पिछले चार सालों में तीन कौशल विकास कोर्स किए: कंप्यूटर ऑपरेटर (2020), मोबाइल रिपेयरिंग (2021), और जनरल ड्यूटी असिस्टेंट (GDA – 2023). सभी कोर्स उसने BSSDM के मान्यता प्राप्त केंद्रों से पूरे किए. लेकिन आज भी वह अपने पिता के साथ खेतों में मज़दूरी कर रहा है.
"पहले सोचा था कि कंप्यूटर सीख के पटना में जॉब मिलेगी. फिर कहा गया कि मोबाइल रिपेयरिंग में स्कोप है. उसके बाद हेल्थ सेक्टर में कहा गया कि मांग है. लेकिन कोई भी कोर्स काम नहीं आया," — रोशन बताते हैं.
तीनों कोर्सों में उसे सर्टिफिकेट तो मिला, लेकिन एक भी जगह से जॉब ऑफर नहीं आया. GDA कोर्स के बाद उसे एक बार कॉल आया था — 8,000 रुपये की नौकरी के लिए, लेकिन उसमें खाना-रहना उसका खुद का होता.
"इतने में पटना में जिंदा भी नहीं रह सकते."
समस्या कहां हुई?
रोशन के मुताबिक़, हर कोर्स में उसे ट्रेनिंग तो दी गई, लेकिन न प्लेसमेंट की तैयारी करवाई गई, न कोई करियर काउंसलिंग मिली.
"कभी नहीं बताया गया कि हमें किस सेक्टर में नौकरी मिलेगी, कहां अप्लाई करना है, या जॉब इंटरव्यू कैसे होता है."
समाधान क्या हो सकता है?
रोशन मानते हैं कि अगर स्थानीय स्तर पर ही हेल्थ वर्क या डिजिटल सर्विस सेंटर से जुड़ने का मौका मिलता, तो वह ज़रूर करता.
"गांव में CSC सेंटर या हेल्थ सेंटर से जोड़ते, तो बेहतर होता. हर बार नया कोर्स करवाने से अच्छा है, पहले किए हुए को ही रोज़गार से जोड़ा जाए."
यह कहानी बिहार के उन हज़ारों युवाओं की एक बानगी है, जो बार-बार स्किल डेवलपमेंट को एक उम्मीद की तरह देखते हैं — लेकिन उन्हें वापस उसी जगह ला छोड़ा जाता है जहाँ से उन्होंने शुरुआत की थी.
आंकड़ों की स्थिति (2024 तक):
कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार:
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बिहार में 2015–2024 के बीच 14.1 लाख युवाओं को प्रशिक्षित किया गया.
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इनमें से केवल 3.1 लाख युवाओं को प्रमाणित प्लेसमेंट मिला.
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यह 22% से भी कम प्लेसमेंट रेट दर्शाता है.
वहीं BSSDM की क्षेत्रीय रिपोर्ट (Q1–2024) के अनुसार:
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ग्रामीण क्षेत्रों में औसतन प्लेसमेंट रेट मात्र 16.9% है.
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महिलाओं के लिए यह आंकड़ा सिर्फ 11.7% है.
प्रशिक्षण के बाद की स्थिति: युवाओं की जुबानी
Democratic Charkha ने 5 ज़िलों (गया, मधुबनी, समस्तीपुर, दरभंगा और वैशाली) में 80 युवाओं से बात की.
सर्वे निष्कर्ष:
अनुभव | प्रतिशत |
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प्रशिक्षण से कोई नौकरी नहीं मिली | 65% |
स्वरोजगार शुरू किया लेकिन असफल रहे | 21% |
प्रशिक्षण लाभकारी लगा लेकिन आगे सपोर्ट नहीं मिला | 14% |
वैशाली की नेहा कुमारी, जिन्होंने सिलाई का कोर्स किया था, कहती हैं: "बाजार में काम मिल जाए तो अच्छा है, लेकिन मशीन खरीदने तक के लिए कोई मदद नहीं मिली. बैंक गए, तो गारंटी मांगी."
जमीनी समस्याएं: कहां हो रही है चूक?
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कोर्स स्थानीय आवश्यकताओं से मेल नहीं खाते
ज़्यादातर कोर्स दिल्ली/मुंबई के कॉर्पोरेट मॉडल पर आधारित होते हैं, जबकि ग्रामीण बिहार में इनकी मांग नहीं है. -
प्रशिक्षकों की गुणवत्ता पर निगरानी नहीं
BSSDM के केवल 10% केंद्रों का ही वार्षिक निरीक्षण होता है. -
इंडस्ट्री कनेक्शन का अभाव
राज्य में उद्योगों की संख्या सीमित है, जिससे नौकरी देने वालों की भागीदारी नगण्य है. -
स्वरोजगार के लिए फाइनेंशियल लिंक्स नदारद
प्रशिक्षुओं को न तो बैंक लोन की जानकारी दी जाती है, न मार्केट लिंकेज. -
योजना फोकस केवल ‘नंबर’ पर
केंद्र प्रशिक्षण संख्या और सर्टिफिकेट तक सीमित हो गए हैं, प्लेसमेंट आंकड़े की प्राथमिकता नहीं है.
महिला भागीदारी और चुनौतियां
2023 की अंतर्गत बिहार में PMKVY के तहत प्रशिक्षित 3.4 लाख महिलाओं में से मात्र 38,000 को ही रोजगार मिला.
समस्तीपुर की शिवांगी देवी कहती हैं, "हमने ब्यूटी पार्लर कोर्स किया, लेकिन दुकान खोलने के लिए न पैसे थे, न ग्राहक का भरोसा. गाँव में लड़कियाँ खुद सिखा देती हैं, तो हमारी ज़रूरत नहीं लगती." महिला सशक्तिकरण के लिए माइक्रो-फाइनेंस, महिला सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स के साथ लिंक जरूरी है.
सरकार का पक्ष: योजनाएं बेहतर होंगी
BSSDM के एक अधिकारी (नाम गोपनीय अनुरोध पर) ने कहा: “हम मोबाइल स्किल वैन, क्लस्टर आधारित पाठ्यक्रम और जॉब मेलों को बढ़ा रहे हैं. सरकार का लक्ष्य है कि 2025 तक 40% प्लेसमेंट दर हासिल की जाए.”
लेकिन ज़मीनी कार्यकर्ताओं का कहना है कि बजट आवंटन और जिला प्रशासन की भागीदारी बहुत कमजोर है.
रास्ता क्या हो सकता है? – व्यवहारिक सुझाव
स्थानीय मांग के अनुरूप कोर्स
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बुनाई, मधुबनी आर्ट, डेयरी प्रोसेसिंग, फूड पैकेजिंग जैसे कोर्स.
इंडस्ट्री साझेदारी
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बिहार में टेक्सटाइल, कृषि उपकरण और डेयरी जैसे MSMEs को प्रशिक्षण में जोड़ना.
डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम
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हर छात्र का प्रशिक्षण से प्लेसमेंट तक डिजिटल ट्रैक तैयार किया जाए.
माइक्रो फाइनेंस, टूल किट्स सपोर्ट
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कोर्स के बाद ₹10,000–₹25,000 का बीजधन और उपकरण सहायता.
पंचायत आधारित योजना कार्यान्वयन
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कोर्स की मांग ग्राम सभा स्तर पर तय हो, जिससे असली ज़रूरतों को पहचाना जा सके.
आंकड़े नहीं, आत्मनिर्भरता चाहिए
बिहार के युवाओं में उत्साह है, कौशल है, लेकिन राह में रुकावटें सरकारी तंत्र की सुस्ती, संसाधनों की कमी और नीति की जमीनी समझ की कमी से पैदा हो रही हैं. कौशल विकास योजनाएं तभी सफल होंगी जब वे प्रशिक्षण से आगे बढ़कर जीवन बदलने का माध्यम बनें.
"सिर्फ सर्टिफिकेट नहीं, सम्मान और स्वरोजगार चाहिए," — ये सिर्फ एक युवक की मांग नहीं, पूरे बिहार की आवाज़ बन रही है.