लड़की की नौकरी लगने दो फिर शादी कराओ ताकि उसे बिछिया ना उतारना पड़े

औरतों के पैर में पहने जाने वाला बिछिया शादी के दिन चढ़ता है तो मरने के बाद ही उतारता है. औरतों के कई ऐसे गहने हैं जो शादी के दिन उन्हें एक निशानी के तौर पर दे दिए जाते हैं.

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लड़की की नौकरी लगने दो

लड़की की नौकरी लगने दो

मेरी मां अक्सर कहा करती है कि औरतों के पैर में पहने जाने वाला बिछिया शादी के दिन चढ़ता है तो मरने के बाद ही उतारता है. औरतों के कई ऐसे गहने हैं जो शादी के दिन उन्हें एक निशानी के तौर पर दे दिए जाते हैं, जो ताउम्र उनकी पहचान रहते है. यह हमारी परंपरा में तो रचा बसा है ही, लेकिन कई बार इसके साइंटिफिक कारण भी सामने आते रहे हैं. खैर उस बात की चर्चा ना करके मैं पैरों में पहने जाने वाले बिछिया की बात कहना चाहूंगी.

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मां की कहीं जाने वाली शादी, पढ़ाई, गहने, परिवार सभी बातों को मैं ध्यान से सुनती हूं समझती हूं और समझने की भी कोशिश करती हूं. मुझसे बड़ी मेरी एक बहन है, जो अभी कॉन्पिटेटिव एग्जाम देती है, वह मुझसे बड़ी है और समाज के अनुसार उसकी उम्र शादी की भी हो गई है इसलिए रिश्ते भी देखे जाते हैं. मगर मैं इसके सख्त खिलाफ रहती हूं. मैं हमेशा रहती हूं कि पहले दीदी की नौकरी लग जाने दो फिर उसकी शादी करा देना. मेरा तर्क है कि बिना लड़के की नौकरी के जब उसकी शादी नहीं कराई जाती तो लड़कियों की क्यों कर दी जाती है? यह तर्क मैं अपने मां से ही करती हूं, पापा तक जाने की हिम्मत मेरी भी नहीं है.

इसी नौकरी और रिश्ता ढूंढने के बीच दीदी एक परीक्षा देने जाती है. परीक्षा केंद्र पर उससे सभी धातु की चीज को निकालने के लिए कहा जाता है, जिसमें वह अपने हाथों में पहना हुआ एक कड़ा उतार कर रख देती है. दीदी के पास में खड़ी एक औरत से पुलिस पैरों का बिछिया उतारने के लिए बोला, कई लड़कियों की हाथों से चूड़ियां, बद्दी, अंगूठी, गले में बंधा हुआ धागा तक पुलिस ने खुलवा दिया था. दीदी यह सब देखती रही और घर आकर मुझे बताती है, हम दोनों ने मां से पूछा कि अब आपके भारतीय संस्कृति के अनुसार बिछिया ना उतरने को आप क्या कहेंगे? इस पर मां चुप रहती है, मगर मैं बोलती हूं कि इसलिए तो मैं कहती हूं, शादी के बाद बिछिया ना उतारना पड़े इसलिए बेटी को पहले से ही नौकरी करानी चाहिए और तब उसकी शादी होनी चाहिए. इस पर मम्मी मुझे डांट देती हैं और कहती हैं बहुत बोलती हो. हां मैं बहुत बोलती हूं, मगर मैं गलत भी तो नहीं कहती, एक बेटी को भी बेटे जितना ही पढ़ा लिखा कर, नौकरी करवा कर और लायक बनाकर ससुराल भेजा जाए.

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