समस्तीपुर लोकसभा सीट पर अब तक 19 चुनाव हुए हैं, जिसमें से 17 आम चुनाव और दो उपचुनाव शामिल हैं. समस्तीपुर सीट पर शुरुआत के 6 चुनावों में सिर्फ कांग्रेस पार्टी का बोलबाला रहा था, 1952 चुनाव से 1971 के चुनाव तक कांग्रेस समस्तीपुर सीट पर जीतती रही. यानी देखा जाए तो इमरजेंसी के समय तक समस्तीपुर पर कांग्रेस के बनी रही थी.
इमरजेंसी और इंदिरा गांधी की सरकार खत्म होने के बाद 1977 के चुनाव में जनता पार्टी ने समस्तीपुर सीट हासिल की. इसके बाद लगातार तीन चुनाव में जनता पार्टी ही इस सीट से जीती रही थी. 1984 में फिर से कांग्रेस पर समस्तीपुर की जनता ने भरोसा दिखाया, हालांकि यह भरोसा आखिरी भरोसे के तौर पर देखा गया. इसके बाद से तीन चुनाव में जनता दल की सरकार समस्तीपुर में बनी, 1989 से 1996 तक जनता दल पर समस्तीपुर की जनता ने भरोसा जताया.
लोजपा का मोदी लहर में दबदबा
पहली बार 1998 में राजद पार्टी की इस सीट पर एंट्री हुई, 1999 में फिर से जनता दल, 2004 में राजद, 2009 में जदयू की सरकार बनी, लेकिन इसके बाद से सभी चुनावी नतीजे लोजपा के पक्ष में रहे हैं. 2014 के चुनाव के बाद से अब तक लोजपा की ही सरकार समस्तीपुर जनता के दिलों को जीत रही है.
इस चुनाव में भी समस्तीपुर सीट पर लोजपा उम्मीदवार ही उतरेगा. गठबंधन की सरकार ने यह सीट चिराग पासवान के खाते में डाली है.
2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के सहयोगी दल लोजपा के टिकट पर रामचंद्र पासवान ने चुनाव लड़ा था और इस सीट से दूसरी बार जीत हासिल की थी. पिछले चुनाव में रामचंद्र पासवान को 5,62,443 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के अशोक कुमार को 3,10,800 वोट मिले थे.
हालांकि पिछले चुनाव में जीत के बाद रामचंद्र पासवान की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद उपचुनाव कराए गए और रामचंद्र पासवान के बेटे प्रिंस राज ने कांग्रेस प्रत्याशी को चुनावी मैदान में हराया था.
पहले दरभंगा का था हिसा
समस्तीपुर पहले दरभंगा जिले का हिस्सा हुआ करता था, 1972 में इसे अलग कर दिया गया. 2019 के परिसीमन के बाद समस्तीपुर सीट एससी-एसटी उम्मीदवारों के लिए सुरक्षित सीट की गई है.
समस्तीपुर लोकसभा सीट पर कुशवाहा, यादव जाति के वोटरों की संख्या ज्यादा है. इसके अलावा अनुसूचित जाति, सामान्य और ओबीसी समुदाय के भी लोग यहां वोट बैंक हैं.