FOR SUNDAY...................
एक पांच साल का बच्चा जिसे अभी ‘सुन्दर’ और ‘कुरूप’ होने का भेद नहीं पता, लेकिन समाज उसे रंगों में भेद के साथ यह समझा देता है कि ‘’गोरा’ मतलब सुंदर और ‘सांवला’ मतलब कम सुंदर. शायद उस बच्चे को सुंदरता की सही परिभाषा कभी बताई भी ना जाए. लेकिन समाज के तय मानकों पर सटीक ना बैठने वाले व्यक्ति से भेदभाव करना सीखा दिया जाता है.
लोग ‘परफेक्ट’ और 'सुंदर' दिखने के लिए लाखों ख़र्च करने को तैयार रहते हैं. यहां तक कि बेहद जटिल सर्जरी कराने में भी परहेज़ नहीं करते हैं. सुंदरता बढ़ाने के नाम पर किये जाने वाले ट्रीटमेंट के हज़ारों क्लिनिक अब छोटे शहरों में भी खोले जा रहे हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े कहते हैं कि विश्व भर में मोटे लोगों की संख्या 100 करोड़ को पार कर गयी हैं. ऐसे में मोटापे को लेकर हमारे पूर्वाग्रह की धारणा को बदलना होगा. सामान्य तौर पर बढ़ा वजन भी उनके तनाव का कारण बन जाता है. बॉडी शेमिंग की आशंका से ग्रस्त व्यक्ति बिना शारीरिक स्थिति की जांच किये जिम में पसीना बहाने लगता है.
समाज में सुंदरता(beauty in society) की परिभाषा क्या है? महिला हो या पुरुष उसे समाज के किन तय मानकों पर खड़ा उतरना ज़रूरी है.