कोसी में बाढ़: सरकारी लापरवाही से जीवन त्रस्त, ना पानी ना खाना मौजूद

“हमारे घरों में पिछले कई दिनों से पानी भरा हुआ है और पानी बढ़ता जा रहा है. हमारा जीवन पूरी तरह से हमारे खेतों की तरह नष्ट हो चुका है. हमारे मदद के लिए नाव का भी इंतज़ाम नहीं है."

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नाजिश महताब
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कोसी की बाढ़

बिहार भारत के सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित वाले राज्यों में से एक है. देश की कुल बाढ़ प्रभावित आबादी में 22.1% हिस्सा बिहार का ही है. बिहार में देश के अन्य बाढ़ प्रभावित राज्यों की तुलना में ज़्यादा नुकसान होता है. राष्ट्रीय बाढ़ आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक देश के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 16.5% बिहार में है, लेकिन इससे नुकसान 22.8% हिस्से का है.

कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है. कोसी नदी भारत और नेपाल के बड़े इलाके में फैली हुई है. इसका जलग्रहण क्षेत्र 95,656 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है. 2008 में कोसी नदी के कारण ही कुसहा के पास बांध टूटा था जिससे बहुत बड़ी आबादी प्रभावित हुई थी करोड़ों का नुकसान हुआ था. उस बाढ़ के निशान अब तक सुपौल, सहरसा, मधेपुरा और अररिया जैसे जिलों में देखने को मिलते हैं.

कोसी नदी में उफान, लोगों का जन जीवन ठप

उत्तरी बिहार में अलग-अलग जगहों पर नदी उफ़ान पर हैं. उफ़ान पर होने की वजह से जन-जीवन पूरी तरह से प्रभावित हो चुका है. लाखों लोग प्रभावित हुए हैं और उनका जीवन बाढ़ की चपेट में है. वहीं मवेशियों के लिए चारे का भी संकट पैदा होने लगा है. नेपाल से लगातार पानी छोड़े जाने के कारण वाल्मीकिनगर गंडक बैराज अपनी क्षमता की अधिकतम सीमा तक भर गया है. गंडक के साथ- साथ सिकरहना नदी भी उफ़ान पर है. 

भारी बारिश के बाद कोसी नदी में उफान आने से सुपौल जिले में बाढ़ के हालात बन गए हैं.

बाढ़ में डूबी सड़क

भीमनगर बैराज पर 3 लाख 93 हज़ार क्यसूेक पानी हुआ डिस्चार्ज

सुपौल, किशनपुर, सरायगढ़ भपटियाही प्रखंडों के तटबंध के अंदर निचले इलाकों में पानी फैल गया है. लगभग तीन दर्जन से अधिक गांव डूब गए हैं. लोगों के घरों में आंगन और दरवाज़े तक दो फ़ीट पानी भर गया है. ऐसे में लोग पलायन कर ऊंचे स्थान पर जाने की तैयारी में जुट गए हैं.

कोसी नदी में शनिवार को यानी 6 जुलाई को 3 लाख 3860 क्यूसेक पानी कोसी बैराज पर डिस्चार्ज किया गया, जिसके बाद कोसी बैराज के 56 फाटकों में से 41 को खोल दिया गया. वहीं रविवार को इस साल का सर्वाधिक जलस्तर सुबह 10 बजे 3 लाख 70 हजार 150 क्यूसेक पार कर गया. नेपाल के बराह क्षेत्र में 2 लाख 31 हज़ार क्यूसेक जलस्तर रिकॉर्ड किया गया है. 

दोनों जगहों पर जलस्तर में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. इस साल कोसी के पानी का डिस्चार्ज भीमनगर बैराज पर 3 लाख 93 हज़ार क्यसूेक से अधिक था.

बाढ़ में फंसे लोग

सुपौल के ग्राम खोखनाहा अंचल मरौना जिला के संतोष जी बताते हैं कि “ये तो हर साल बाढ़ झेलना पड़ता है, हर साल बाढ़ से तबाही होती है. लेकिन इस साल ज़्यादा तबाही हुई, क्योंकि पश्चिमी साइड से जो सुरक्षा बांध उसके साइड में सरकार ने जो डैम बनाया है. जिसकी बढ़ोतरी होने के कारण और नदी का चौड़ाई कम करने के कारण तबाही बढ़ गई है. इससे पहले 1-1.5 लाख क्यूसेक पानी आता था लेकिन इस साल 3 लाख 96 हज़ार क्यूसेक पानी छोड़ा गया जिससे जीवन तबाही में है.”

लोगों के घरों में कई दिनों से भरा है पानी

कोसी पूर्वी तटबंध और पश्चिमी तटबंध/सुरक्षा बांध के बीच के अधिकांश गांवों के लोगों के घर- आंगन में पानी है. रास्ते और खेत पानी से डूबे हैं. वहां के लोगों पर भारी मुसीबत है, उनकी पीड़ा दयनीय स्थिति में है जिसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है.

पानी कम भी हो जाता है तो भी गांव में फैला पानी लोगों के घरो से निकलने और स्थिति थोड़ी सामान्य होने में कई दिन लग जाते हैं. इसके पूर्व भी 20 जून 2024 को 2 लाख 39 हज़ार क्यूसेक पानी आया था. जिससे लोगों के घर आंगन पानी से भरे थे. जब बैराज पर रेड एलर्ट हो गया उस समय कोई भी सूचना देते हुए नहीं दिखा, पर्याप्त संख्या में सरकारी अनुबंध की नाव भी नहीं दिखी.

उधर सदर अंचल के बलवा पंचायत का डुमरिया, बैरिया पंचायत का मुन्गरार, किशनपुर अंचल का मौजहां, सुजानपुर, बेला इत्यादि गांवों में कोसी की धार में अनेक घर नदी की धारा में समा गई है. झकराही गांव के किशनपुर अंचल सुपौल जिला के चंद्र मोहन बताते हैं कि “हमारे घरों में पिछले कई दिनों से पानी भरा हुआ है और पानी बढ़ता जा रहा है. हमारा जीवन पूरी तरह से हमारे खेतों कीn तरह नष्ट हो चुका है. हमारे मदद के लिए नाव का भी इंतज़ाम नहीं है. हमें ऊंची जगह पर जाकर खाना बनाना पड़ रहा है. सरकार की तरफ़ से किसी भी तरह को राहत सामग्री हम तक नहीं पहुंची है. हमने जिला पदाधिकारी से बात करने की कोशिश भी की, लेकिन हम तक कोई मदद नहीं पहुंच रही है. हम सारे काफ़ी परेशान हैं. पूरा गांव बाढ़ के चपेट में है.”

अवैध कब्ज़े के कारण पुनर्वास को नहीं जा पा रहें

लोग कटाव से बर्बाद हुए लोग अनेक जगह तटबंध पर अपना बचा हुआ समान रखकर बचने की कोशिश कर रहें हैं. यदि उन्हें मिले पुनर्वास पर अवैध कब्ज़ा नहीं होता तो आज नौबत यहां तक नहीं पहुंचती. पुनर्वास पर संतोष बताते हैं कि “सुपौल में ही हमारा पुनर्वास है. हमारे घर में 6 लोग हैं. घर में बूढ़े मां-बाप और दो बच्चे हैं. हमारे घर में पानी घुस गया है और मवेशियों को भी नुकसान हो रहा है. खाने-पीने का भी इंतज़ाम सरकार के तरफ़ से नहीं हो रहा है. मवेशियों का चारा भी ख़त्म हो गया है. हम मवेशियों को सुखा भूसा खिला रहें हैं. हमारा जो खेत था वो भी पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है और फिर भी सरकार हमारे ऊपर ध्यान देते नज़र नहीं आ रही है. ये सब के चलते जब हम पुनर्वास में जाना चाहते हैं तो हम जा नहीं पाते क्योंकि वहां पर बाहुबलियों ने कब्ज़ा कर रखा है और घर भी बना लिया है.” 

कोसी की बाढ़ दृश्य

प्रधान सचिव आपदा प्रबंधन विभाग के पत्रांक 3340 दिनाक 3-9-2016 द्वारा बाढ़ प्रभावितों को मुफ़्त सहायता वितरण के लिए दिशा निर्देश दिए हैं. जिसके कंडिका 3 में लिखा है कि "जब कोई मुहल्ला/ टोला एवं गांव नदी के पानी से चार पांच दिनों तक चारो तरफ़ से घिर जाए तथा जहां पहुंचने के लिए कोई रस्ता नहीं बचे, इससे सभी का जीवन कुप्रभावित हो जाए तो सभी बाढ़ पीड़ित माने जायेंगे और प्रभावित आबादी में सभी को मुफ़्त मदद अनुमान्य होगा.

बीमारी फैलने के डर से घर से नहीं निकल रहे लोग

सुपौल के बलदेव जो बाढ़ से जूझ रहें हैं वो बताते हैं कि “बाढ़ से हमारी जीवन पर काफ़ी गहरा असर पड़ा है. हमारा फ़सल पूरी तरह बर्बाद हो चुका है और तो और मवेशियों की हालत भी ख़राब है. और हम घर से बाहर निकल भी नहीं पा रहे हैं और हमारे इधर नाव का इंतज़ाम भी नहीं किया गया है. बाढ़ के पानी में कई तरह के मृत्य जानवर हैं और इससे बीमारी फैलने की संभावना भी बढ़ गई है. सरकार जल्द से जल्द हम तक पहुंचे क्योंकि नीतीश कुमार बस हवाई यात्रा कर निरक्षण करते हैं, धरातल पर सरकार नहीं आ पाती है.

कोशी नव निर्माण मंच के संस्थापक महेंद्र से जब हमने बात की तो उन्होंने सरकार के सामने अपनी मांग रख दी

  • कोशी पूर्वी तटबंध और पश्चिमी तटबंध/ सुरक्षा बांध/गाइड बांध के बीच के गांवों को बाढ़ घोषित किया जाए. 
  • विभाग द्वारा निर्धारित मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) और तय मानदर के तहत पूर्वी कोशी तटबंध और पश्चिमी सुरक्षा बांध/ गाइड बांध के  अंदर रहने वाले सभी बाढ़ पीड़ित है उनके राहत कार्य तेज किए जायें.
  • सभी बाढ़ पीड़ितों को सूखा राशन वितरित कराया जाए
  • तटबंध के भीतर जहां गांव कट रहे हैं और जहां ज़रूरत है वहां पर कम्युनिटी किचन की व्यवस्था  करायी जाए.
  • कटाव पीड़ितों के समान निकालने के लिए सरकारी नावों को भेजा जाए. उनको तत्काल सरकारी जमीन में बसाया जाए.
  • मुफ्त साहाय्य राशि (G.R.) के लिए 7000 रूपये का भुगतान सभी बाढ़ पीड़ित परिवारों के खातों में भेजा जाए. साथ ही उसकी सूची भी सार्वजनिक हो और यदि किसी त्रुटीवश किसी के नाम उसमें छुट जाते हैं तो उन वंचित परिवारों के नाम जोड़ने की मुकम्मल व्यवस्था हो.
  • उसी प्रकार मानदर के तहत वस्त्र/बर्तन व घरेलू समानों की क्षति के लिए 2000 और 1800 रूपये दिए जाएं.
  • गृह क्षति/ नदी की धारा में समाहित होने वाले सभी घरों का सर्वे कराकर क्षतिपूर्ति कच्चे व पक्के घरों का 95100 जिनकी झोपडीयां ध्वस्त/कटी हैं उन्हें 4100 और साथ में लगे मवेशी शेड के लिए 2100 गृहक्षति मद से जल्द दिलाई जाए.
  • तटबंध के बड़े क्षेत्रफल में मूंग कई फ़सल बर्बाद हुई है. बिचड़ा भी डूबने से ख़राब हुआ है. जहां धान की रोपनी हुई थी वह भी डूबने के कारण नष्ट हो जायेगा बर्बाद है इसलिए उन सभी क्षेत्रो का सर्वे कराकर किसानों को फ़सल इनपुट अनुदान का लाभ दिए जायें. 
  • सभी घाटों पर अनुबंधित नावों के बोर्ड/ फ्लैक्स लगवाये जायें. जहां नाव नहीं है वहां नाव को व्यवस्था की जाए.
  • तटबंध के भीतर नाव पर मोबाइल डिस्पेंसरी स्थापित कराकर इलाज के लिए, सभी गांव में भेजा जाए.

महेंद्र बताते हैं कि “कोसी नदी के किनारे रह रहे लोगों की जीवन किसी नरक से कम नहीं है. लोगों तक किसी भी तरह को सुविधा नहीं मिल रही है. लोगों के घरों में पानी है, अधिकतर लोग किसान हैं और उनकी फ़सल बर्बाद हो चुकी है वहीं उनके मवेशियों के लिए चारा की भी समस्या सामने आ रही है. ऐसे में सरकार जल्द से जल्द हमारी मांगों को पूरी करे.”

पीने को नहीं है साफ़ पानी

कोसी नदी में जबसे उफ़ान आया है, लोगों की ज़िंदगी काफ़ी प्रभावित हुई है. घरों के अंदर पानी घुस चुका है. पूरे गांव पानी में समा चुका है लेकिन पीने के लिए पानी लोगों के पास नहीं है. अधिकतर घर पानी के लिए चापाकल पर निर्भर थे और बाढ़ में चापाकल डूब चुका है, ऐसे में पानी न मिलने से लोगों को काफ़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

सुपौल के रहने वाले अनवर अली जो बाढ़ से प्रभावित हैं वो बताते हैं कि “बाढ़ के कारण पूरी जीवन अस्त- व्यस्त हो चुकी है. खाने को लाले पड़े हैं और पीने को पानी नहीं है. हमें कई बार प्यासे ही सो जाना पड़ता है. पानी हर तरफ़ है लेकिन पीने के लिए एक बूंद पानी तक नहीं है”

इन सारे मुद्दों पर जब हमने बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के पदाधिकारी से बात करने की कोशिश को तो उन्होंने हमारे कॉल का जवाब नहीं दिया. हमारे लगातार कोशिश करते रहेंगे ताकि समस्या का जल्द से जल्द निदान हो सके.

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