बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के काजीमोहम्मदपुर थाना क्षेत्र के पोखरियापीर स्थित आंबेडकर कालोनी में जहरीली शराब पीने से दो लोगों की मौत हो गयी है. वहीं दो अन्य लोगों के आंखों की रौशनी चली गयी है. बिहार में जहरीली शराब पीने का यह कोई नया मामला नहीं है. अब तो यहां जैसे हर महीने दो महीने पर इस तरह की घटना सामने आते रहती है.
मृतकों की पहचान जिले के काजी मोहम्मदपुर थाना अंतर्गत पोखरियापीर मोहल्ले के निवासी पप्पू राम (32) और उमेश साह (50) के रूप में की गई. उन्होंने 17 सितंबर को देशी शराब पी थी. तबियत बिगड़ने पर परिजनों ने उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया था जहां वे एक सप्ताह से भर्ती थे. लेकिन रविवार (24 सितम्बर) को सुबह करीब 7.30 बजे उनकी मौत हो गई. वहीं इस घटना में दो अन्य व्यक्ति राजू साह और धर्मेंद्र राम के आंखों की रौशनी चली गयी है.
पुलिस ने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करते हुए शराब धंधेबाज शिवचंद्र पासवान को आरोपित बनाया है. घटना के अगले ही दिन आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.
छापेमारी के दौरान कई ठिकाने ध्वस्त किये गए
काजीमोहम्मदपुर थानाध्यक्ष राज कुमार के अनुसार “जहरीली शराब पीने से आंखों की रोशनी गंवाने वाले धर्मेंद्र राम के बयान पर प्राथमिकी दर्ज की गई है. इसमें धर्मेंद्र ने कहा है कि उसने शिवचंद्र पासवान से शराब लेकर पी थी. राजू साह ने भी शिवचंद्र पासवान से शराब लेकर पीने की बात कही है.”
पीड़ित धर्मेंद्र राम के अनुसार शिवचंद्र पासवान सादपुरा पोखरिया पीर स्थित बंद बर्फ फैक्ट्री में ताड़ी और शराब बेचता था. 17 सितम्बर को सुबह 7 बजे उसने वहां से दो ग्लास शराब पी थी. शराब पीने के बाद घर आकर सो गया. दोपहर करीब ढाई बजे जागने पर धुंधला दिखाई पर रहा था. जिसके बाद स्थानीय दवा दुकानदार से ऑई ड्राप लेकर आंख में डाला. कुछ देर बाद दिखाई देना बंद हो गया.
पुलिस पूछताछ में शिवचंद्र ने शराब के धंधे में शामिल कई और धंधेबाजों के नाम व ठिकाने बताए जिसके आधार पर पोखिरिया पीर, कच्ची-पक्की, माधोपुर, सुस्ता समेत कई जगहों पर छापेमारी की गई. इस दौरान किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई, लेकिन शराब बनाने और बेचने के कई ठिकाने ध्वस्त किए गए.
वहीं इस मामले में मुजफ्फरपुर के नगर एएसपी अवधेश दीक्षित का कहना है कि “शराब से मौत मामले में प्राथमिकी दर्ज कर ली गयी है. शराब धंधेबाज शिवचंद्र पासवान को गिरफ्तार कर लिया गया है. पूछताछ के बाद उसे न्यायिक हिरासत में भेजा गया है. मामले में विशेष टीम जांच कर रही है.”
गरीब लोग ही बनते हैं जहरीली शराब का शिकार
ज्यादातर मामलों में जहरीले शराब का शिकार गरीब लोग ही बनते हैं. क्योंकि शराबबंदी कानून लागू होने के कारण राज्य में शराब बनाना या बेचना अवैध हो गया है. लेकिन लंबे समय से देशी शराब बनाने और बेचने वाले लोगों के लिए यह उनके जीविका का साधन है. रोजगार का कोई दूसरा विकल्प ना होने के कारण आज भी लोग इस धंधे में चोरी छिपे लगे हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी सरकार को घेरते हुए कहा कि "शराबबंदी के नाम पर बस गरीबों की हत्या और गिरफ्तारी हो रही है. गरीब जहरीला शराब पीकर मर रहा है."
वहीं देशी शराब के ज़्यादातर ग्राहक मजदूर और निम्न वर्ग से आते हैं. गोपालगंज, सीवान, मुज्जफरपुर, सारण, मोतिहारी जैसे किसी भी जगह में जहां शराब पीने से लोगों की मौत हुई है वे मजदूर वर्ग के थे.
अभी रविवार को मौत के भेंट चढ़े लोग भी मजदूर थे. मृतक उमेश साह मकान पेंट करने का काम करते थे. वहीं मृतक पप्पू राम डीजे में लाइटिंग और साउंड का काम करते थे. आंखों की रौशनी गंवा चुके धर्मेंद्र कुमार गैस वेंडर और राजू साह मजदूरी करते हैं. ये सभी लोग और इनके जैसे अन्य लोग अक्सर नजदीक में मिलने वाली देशी शराब पिया करते थे.
"शराब बेचने वालों को पुलिस का सपोर्ट"
शराब पीने से हुई मौत के बाद स्थानीय लोग उग्र हो गए हैं, लोगों का आरोप है कि पुलिस की जानकारी में यहां अवैध शराब बेचा जा रहा था. स्थानीय लोगों का कहना है कि “पुलिस को सब पता है कहां शराब बिक रहा है. अगर हमलोग कंप्लेन करते हैं तो पुलिस उल्टा हमलोग को ही फटकार देती है. अंधेरा होते ही बोरा के बोरा पीठ पर लादकर शराब ले जाया जाता है.”
स्थानीय लोगों का आरोप है कि खुलेआम शराब बेचा जाता है लेकिन पुलिस कोई कार्यवाई नहीं करती है क्योंकि उनका कमीशन फिक्स है.
शराब बेचने के मामले में पुलिस की संलिप्तता पर पूर्व आईपीएस अमिताभ कुमार दास का कहना है “इसमें कोई शक की बात नहीं है कि इसमें पुलिस की संलिप्तता नहीं है. जब से शराबबंदी लागू हुई है भ्रष्ट पुलिसकर्मी मालामाल हो गए हैं. उनकी तस्करों से सांठ-गांठ हो गयी है. ऐसा नहीं हो सकता की किसी क्षेत्र में शराब बनाई या बेची जा रही है और इसकी जानकारी पुलिस को ना हो. अगर जानकारी के बाद भी पुलिस उसपर कोई एक्शन नहीं कर रही है तो यह तय है कि उनका कमीशन उन तक पहुंच रहा है.”
पूर्व आईपीएस का कहना है कि राज्य में शराबबंदी पूरी तरह से विफल हो गयी है. इससे केवल राज्य को राजस्व घाटा हो रहा है. बिहार में शराब माफिया का उदय हो गया है. एक समानांतर अर्थव्यवस्था का निर्माण हो गया है. उसमें शराब तस्कर से लेकर भ्रष्ट पुलिसकर्मी तक शामिल हैं. और विडंबना यह है कि बिहार का मद्य निषेध विभाग कुछ कर नहीं पा रहा है.
कई मौत के आंकड़े नहीं होते दर्ज
एनसीआरबी (NCRB) के रिपोर्ट के अनुसार 2015 से 2021 तक बिहार में जहरीली शराब पीने से मात्र 23 लोगों की मौत हुई है. एनसीआरबी ये आंकड़े स्थानीय पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज आंकड़ों के आधार पर तैयार करती है. ऐसे में वैसे मामले जो थान इसे बाहर निपटा दिए जाते हैं वे पुलिस रिकॉर्ड में कहीं दर्ज ही नहीं होते हैं.
एनसीआरबी की रिपोर्ट में साल 2016 में सिर्फ 9 मौत बताई गई, जबकि अगस्त 2016 में अकेले गोपालगंज के खजूरबानी में 19 लोगों की मौत जहरीली शराब से हुई थी. इसकी पुष्टि कोर्ट में भी हो गई थी.
अधिकारिक आंकड़े और वास्तविक आंकड़ों में अंतर का कारण बताते हुए अमिताभ कुमार दास कहते हैं “पीड़ित परिवार ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं होता है. शराब पीने से हुई मौत के बाद परिवार पुलिस को बिना बताए चुपचाप अंतिम संस्कार कार देता है. परिवार को दर रहता है पुलिस उनसे ही पूछताछ करेगी- शराब कहां से खरीदी, किससे खरीदी. कुछ मामलों में पुलिस भी केस दबा देती है."
महिला वोट बैंक साधने के लिए हुई शराबबंदी
बिहार में जीविका दीदियों की मांग पर नीतीश कुमार ने साल 2016 में पूर्ण शराब बंदी की घोषणा की थी. हालांकि पूर्ण शराबबंदी के बावजूद राज्य में शराब बहुत ही आसानी से उपलब्ध है. अमीरों की पार्टी और तलबगारों के हाथ में शराब आज भी बिना किसी परेशानी के उपलब्ध है.
साल 2016 में जब पूर्ण शराबबंदी लागू हुई थी उस साल भी गोपालगंज में 19 लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हुई थी जबकि छह लोगों ने अपने आंख की रौशनी हमेशा के लिए गवां दी थी.
हालांकि जहरीली शराब पीकर मरने वाले लोगों के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अलग ढंग से सांतावना व्यक्त करते हैं. उनका कहना है कि “गड़बड़ पियोगे तो इसी तरह से जाओगे.”
उस समय विपक्ष की भूमिका में रहे तेजस्वी यादव शराबबंदी को लेकर हर समय सरकार को घेरते नजर आते थे. तेजस्वी का आरोप था कि नीतीश ऐसे ही बड़बड़ करते हैं. आज भी 200 की बोतल 1500 में मिल रही है. राज्य में 20 हज़ार करोड़ की अवैध शराब की तस्करी हो रही है. राज्य को राजस्व घाटा हो रहा है.
हालांकि आज समय और हालात दोनों बदल चुके हैं. कभी सरकार को शराब नीति पर घेरने वाले तेजस्वी यादव अब नीतीश कुमार के साथ सरकार में बैठे हैं. तेजस्वी अब तो ना राजस्व घाटे और ना ही गरीबों की होने वाली मौत पर चिंता जताते हैं.