7 अक्टूबर को गाजा पट्टी से हमास ने इजराइल पर कई रॉकेट्स दागे. इजराइली राष्ट्रपति नेतान्याहू ने युद्ध की घोषणा कर दी. लेकिन मर्माहत हुए हमारे भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी. यकीनन मर्म होना भी चाहिए. ऐसे भी बड़े बुज़ुर्ग कह गए हैं कि जब एक मासूम मरता है तो उसके साथ पूरी इंसानियत मर जाती है.
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जिस तरह फिलिस्तीनी और इजराइली नागरिक मर रहे थें, ठीक उसी तरह देश में मणिपुर हिंसा भी हो रही थी. लेकिन पता नहीं क्यों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारत के राष्ट्रवादियों की आत्मा उस समय मर्माहत नहीं हुई. उस समय ट्विटर पर #istandwithisrael की तरह #istandwithmanipur ट्रेंड नहीं किया. ये भी हो सकता है कि अखंड भारत का सपना देख कर सोने वाले देश के राष्ट्रवादियों की परिकल्पना में नार्थ-ईस्ट आता ही ना हो. शायद इसी वजह से सालों तक राष्ट्रवादियों की पहुंच से इरोम शर्मिला चीख दूर रही. और अब मणिपुर की चीख भी दूर है.
राष्ट्रवादी एक्टर और पद्मश्री सम्मानित कंगना रानौत मणिपुर की हिंसा पर चुप रहती हैं. इजराइल के मामले पर मुखर हो जाती हैं. जब पत्रकार उनसे मणिपुर पर सवाल करते हैं तो वो बात को घुमा कर कहती हैं कि
“मैंने मणिपुर की हिंसा पर जब बयान दिया तो मेरी वहां पर रह रही मणिपुरी दोस्तों को उससे खतरा होता. इसलिए मैंने आगे कोई बयान नहीं दिया और अपना ट्वीट भी डिलीट कर दिया.”
हालांकि उनके डिलीट ट्वीट के स्क्रीनशॉट मौजूद नहीं हैं.
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क्या सरकार से अलग पक्ष रखना गलत?
लेकिन ऐसा नहीं है कि किसी को इजराइल-फिलिस्तीन मामले पर बोलने का अधिकार नहीं होना चाहिए. जब सरकार के कई मंत्री और सांसद इस मामले पर खुल कर अपनी बात रख चुके हैं तो सभी लोगों को अधिकार होना चाहिए. लेकिन इजराइल-फिलिस्तीन मामले पर जो भी अपना पक्ष, सरकार के पक्ष से अलग रख रहा है सरकार उस पर कानूनी कार्यवाई की बात भी कह रही है.
9 अक्टूबर को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कुछ छात्रों ने फिलिस्तीन के समर्थन में एक रैली निकाली. जब सरकार अपना पक्ष रख सकती है तो छात्रों को भी अधिकार है ही बातों को रखने का. लेकिन प्रशासन इस्लामोफोबिया के बुखार में ऐसी ग्रसित थी कि पुलिस ने 4 छात्रों सहित कुछ अज्ञात लोगों के ऊपर प्राथमिकी दर्ज करवाई है. सब-इंस्पेक्टर अजहर हसन ने सिविल लाइन्स पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज करवाई है. छात्रों के ऊपर IPC की धारा 153 A यानी धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना. IPC की धारा 188 यानी, लोक सेवक के द्वारा दिए गए आदेश की अवहेलना करना और IPC की धारा 505 यानी Statement conducing in public mischief लगायी गयी हैं.
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क्या कहना है कानूनी जानकारों का?
कानूनी मामले के जानकार और मानवाधिकार अधिवक्ता विशाल कुमार डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए कहते हैं "पुलिस के द्वारा जो FIR की गयी है उससे छात्रों के भविष्य पर असर पड़ेगा और लीगल सिस्टम पर बिना मतलब का बोझ बढ़ेगा. अगर किसी को छात्रों के प्रदर्शन या रैली से दिक्कत थी तो इसे बातचीत से भी सुलझाया जा सकता था. या फिर यूनिवर्सिटी के अंदर ही एडमिन बोर्ड से शिकायत की जा सकती थी. इसके लिए FIR की कोई भी ज़रूरत नहीं थी."
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के से लॉ की पढ़ाई कर रहे कैफ हसन इस पूरे मामले पर हैरानी दर्ज करते हैं. कैफ डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए कहते हैं "महात्मा गांधी ने अपनी पत्रिका में फिलीस्तीन के समर्थन में लेख लिखा था. भारत पहला नॉन-अरब मुल्क था जिसने फिलिस्तीन में अपना रिप्रेजेंटेटिव ऑफिस शुरू किया था. भारत और फिलिस्तीन का पुराना संबंध रहा है. और ये सारी बातें मैं नहीं कह रहा हूं बल्कि खुद विदेश मंत्रालय, भारत सरकार की वेबसाइट पर मौजूद है. जब यही बातें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र कहते हैं तो उनके ऊपर प्राथमिकी क्यों दर्ज की जाती है?"
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ये तो तय है कि अब सरकार ही तय करेगी कि आपको किस पक्ष में बात रखनी है और ये भी तय करेगी कि क्या बात रखनी है. इन सब के बाद भी हम कहेंगे कि देश में लोकतंत्र है. लेकिन इसी तरह लोकतंत्र का गला घोंटने की तैयारी चल रही है. मीडिया संस्थानों पर छापे पड़ रहे हैं, पत्रकारों पर UAPA लग रहे हैं. बूढ़े स्टेन स्वामी की जेल में मौत होती है, उमर खालिद 3 सालों से अधिक समय से जेल में बंद हैं. प्रोफेसर के फोन जब्त किये जाते हैं. इन सब के बीच हमारा देश G20 समिट की अगुआई करता है और वसुधैव कुटुम्बकम का ज्ञान दुनिया में देकर विश्वगुरु बन जाता है.